Sunday, 13 November 2022

दीवान ए सत्यं | Diwan E Satyam | Anil Satyam



मेरे दुश्मन ही नहीं एक, मुझको ग़म देते हैं
अब तो इनमें सितमग़र तेरा नाम भी आने लगा

कभी सिगरेट कभी शराब हर रोज़ नए तज़ुर्बें करता हूं
तेरे ग़म में सितमगर अपने रुतबे से भी गिर गया मैं

मैं भी ख़्वाहिशों के शहर में, तू भी ख़्वाहिशों के शहर में
घर अपना बनाने चले हैं, इस तपती हुई दोपहर में

कईं राज़ मैनें सीने में उतार रखे हैं
बहते आंसू आंखों में संभाल रखे हैं
यूं ना आज़माइश करो मेरे सब्र की
मैंने कईं चांद जमीं पे उतार रखे है

मैं सुनाऊंगा दास्ताने-इश्क, कोई सवाल तो दे
अश्क छिपा सकूं महफ़िल में, रुमाल तो दे
इतना भी नहीं आसां यह राज़ बताना
मेरे हाथों में छलकता एक जाम तो दे।

इस प्यास में प्यार की सौगात मिल जाए
तपती ज़मीं को अल्हड़ कोई बरसात मिल जाए
हाथ मिलाना तो जैसे ग़ैर-ज़रूरी है
जरूरी ये है बहुत के ख़यालात मिल जाए

Wednesday, 9 November 2022

मैं, मित्र और महबूब




यह कहानी मेरी किशोरावस्था की है, जिस समय मेरी उम्र 16 वर्ष थी। उन दिनों मैं पढ़ाई करने के साथ-साथ एक फैक्ट्री में अपने एक मित्र जिसका नाम विपिन था के साथ काम करने भी जाया करता था। नौकरी से जो पैसा मिलता था उससे मैं अपनी पढ़ाई व रोजमर्रा का पॉकेट खर्च निकालता था।

मैं और मेरा मित्र फ़ैक्ट्री तक 2-3 किलोमीटर का रास्ता पैदल चल कर ही जाया करते थे। दिन में जैसे ही दोपहर 1ः00 बजे लंच टाईम होता था तो हम दोनों जल्दी से खाना खाते और उसके बाद बाहर टहलने निकल जाते, जो कि हमारी रोज़ की आदत में शामिल था। वैसे तो हमें उस कॉलोनी की ज्यादा जानकारी नहीं थी इसलिए हम अधिक दूर तक नहीं जाया करते थे। मेरे मित्र को तंबाकू खाने की आदत बनती जा रही थी इसलिए वह कॉलोनी की पास की एक दुकान पर भी जाया करता था। हम दोनों दोपहर लगभग 1ः30 बजे रोज़ एक गली से गुजरते और वापिस आकर फिर से काम पर लग जाते थे। लगभग डेढ़ महीना तक ऐसे ही चलता रहा।

एक दिन की बात है हम उस गली से गुज़र रहे थे कि तभी विपिन ने अचानक तबाकू की पुड़िया निकाली और उसे तुरंत दांतो से काटकर मुंह में डालते हुए आहिस्ता-आहिस्ता मुस्कुराने लगा। मैंने जैसे ही अपनी गर्दन दूसरी तरफ घुमाई तभी अचानक मेरी नज़र वहां मकान की बालकनी पर खड़ी एक लड़की पर पड़ी, जो कि लगातार हमारी तरफ देखकर मुस्कुरा रही थी। हम आगे बढ़ते रहे और फिर फैक्ट्री लौट आए और काम पर लग गए।

एक दिन जब हम उस गली से गुज़र रहे थे तो वही बात मैंने तब भी नोटिस की। वह लड़की लगातार हमारी तरह देखती ही जा रही थी। बार-बार एक ही तरह की चीजें होना, यह बात मुझे हज़म नहीं हुई और मैंने विपिन से पूछ ही लिया कि वह कौन है? इस पर विपिन ने कहा कि वह लड़की उसे देखकर रोज़ मुस्कुराती है और वह भी उसे ही देखने के लिए इधर से गुजरता है। इतना सुनते ही भूतकाल में हुई सारी घटनाओं की स्मृतियां मेरे मस्तिष्क में तैरने लगी। इस पर मैंने विपिन को याद दिलाते हुए कहा- “अच्छा बच्चू तो तुम मुझे अपने साथ इसको देखने के लिए ही लेकर आते हो?“ तभी इस पर विपिन ने हंसते हुए कहा हां-हां तुम्हारा अंदाज़ा एकदम सही है। फिर उसने विस्तार से मुझे सारी बातें बता डाली। उसके बाद जब कभी भी हम उस गली से गुजरते तो वह ठीक समय पर बालकनी में खड़ी होती और हमें देखकर मुस्कुराती थी। मैं उससे कभी नज़रें नहीं मिलाता था। विपिन को कोई बाधा ना हो इसलिए रास्ते पर दूसरी तरफ चलता था। लगभग 3 महीने गुज़र जाने के बाद मैंने उस फै़क्ट्री से काम छोड़ दिया पर विपिन अब भी नियमित रूप से वहां जा रहा था।

लगभग 12 दिन गुजरने के बाद विपिन मेरे पास आया तो मैंने देखा कि उसका मुंह लटका हुआ था। मैंने पूछा- “क्यों भाई कैसे उदास हो? सब ठीक तो है। क्या उससे बात आगे बढ़ी?“ तो इस पर विपिन ने मुझसे नज़रें झुकाकर घबराते हुए कहा- "भाई सत्यं मैं और ज्यादा दिन तक इस सच्चाई को नहीं छुपा सकता" और तभी अपनी जेब से एक काग़ज का टुकड़ा निकाला और मेरे हाथ पर रख दिया। मैंने उसे खोलकर देखा तो उस पर एक टेलीफोन नंबर और नीचे एक लाईन में लिखा था कि “मैं आपको याद करती हूं।“ मैंने यह सब पढ़ने के बाद विपिन से कहा- तो इसमें घबराने की क्या बात है तुम उसे फोन कर लो। तो इस पर विपिन ने मुझसे कहा तुम समझ नहीं रहे हो और सच्चाई बताते हुए कहा कि ‘‘यह काग़ज़ का टुकड़ा उसको 7 दिन पहले दिया गया था, जब वह उस लड़की की गली से गुज़र रहा था, लेकिन स्वार्थ के कारण वह तुम्हें दिखाना नहीं चाहता था।’’ तो इस पर मैंने भी हंसते हुए कह दिया ‘‘कोई बात नहीं अगर तुम अपनी बात मुझसे सांझा नहीं करना चाहते।’’ तभी इस पर विपिन ने गुस्से से कहा कि 7 दिनों से मैं इस काग़ज़ के टुकड़े को तुमसे इसलिए छुपाए फिर रहा हूं क्योंकि यह काग़ज़ का टुकड़ा उसने मुझें तुम्हें देने के लिए दिया था, और अब मैं इस सच्चाई को ज्यादा नहीं छुपा सकता।

विपिन के मुंह से ऐसी बातें सुनकर मानो मेरे पैरों की जम़ीन ही खिसक गई और मैं एकदम स्तब्ध रह गया। विपिन ने मुझे सारी सच्चाई बताई कि- सात दिनों पहले जब वह उस गली से गुज़र रहा था तो उस लड़की ने उसका पीछा किया और रास्ते में उसे रोक कर तुम्हारे बारे में पूछने लगी, और बोली मैं उनका नाम तो नहीं जानती लेकिन कईं दिन हो गए हैं, मैंने उनको देखा नहीं और अब वो यहां क्यों नहीं आ रहे? ‘‘कैसे भी करके एक बार उनको यहां ले आओ। मैं उनसे मिलना चाहती हूं। हो सके तो मुझ पर इतना एहसान कर दो प्लीज़!

यह सब सुनने के बाद मेरे पास कोई शब्द नहीं था। हम दोनों के गले की आवाज़ बैठ गई। थोड़ी देर रुकने के बाद विपिन ने मुझसे हाथ मिलाया और बिना कुछ बोले घर चला गया।

Sunday, 6 November 2022

Quotation । उद्धरण

मनुष्य जिस बात को सहजता से जान लेता है उसे साधारण मान लेता है और जो बात उसकी तार्किक क्षमता से परे होती है उसे चमत्कार मान लेता है।



वेद-पुराणों के अनुसार कोई भी जीवित व्यक्ति स्वर्ग नहीं जा सकता। फिर कुछ जीवित धूर्त बाबा जिन्होंने खुद तो स्वर्ग देखा नहीं परंतु लोगों को रास्ता कैसे दिखा रहे हैं?
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शरीर में जब दवा असर ना करें तो समझ लेना चाहिए कि रोग शारीरिक नहीं मानसिक है ना कि अलौकिक।
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।। डेढ़ मिनट पानी का नियम ।।
पहले 30 सेकंड तक ज़मीन पर बैठे रहे
फिर 30 सेकंड तक पानी पीए
और फिर 30 सेकंड बाद खड़े हो जाएं।
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।। चार धाम यात्रा क्यों कराई जाती है?।।
* इसलिए नहीं कि तुम्हें मोक्ष प्राप्त होगा, बल्कि इसलिए ताकि मनुवादियों का व्यवसाय व व्यवस्था चलते रहें।
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मनुवाद में संख्या 3 व 8 को अशुभ क्यों माना जाता है?
* संख्या ३ :
क्योंकि बौद्धों की ३ पवित्र पुस्तकें त्रिपिटक हैं।
* संख्या ८ :
क्योंकि बौद्धों के ८ मार्ग हैं जिन्हें अष्टांग मार्ग कहते हैं।
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इतनी खुशी सोना मिलने के बाद भी नहीं होती, जितनी की कुछ घंटे सोने के बाद होती है।
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कुछ लोग रामराज लाने की योजना बना रहे हैं पर इसके लिए राम भी तो जिंदा होना चाहिए।
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किसी का भगवान चाहे 5000 वर्ष पुराना हो या 50 वर्ष पुराना, भक्त की आस्था उसे दूसरों से श्रेष्ठ ही मानती है।
यही सबसे बड़ा भ्रम-विश्वास है -
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वहम का इलाज भी संभव है किंतु इसके लिए आपको हकीम के पास नहीं मनोवैज्ञानिक डॉक्टर के पास जाना होगा।
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धोखा झूठ के बल पर खड़ा होता है लेकिन इसे चमत्कार बताकर विद्वानों और ताक़तवरों को भी आसानी से बेवकूफ़ बनाया जा सकता है।
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एक साधारण बैल को नंदी बैल बनने की प्रक्रिया में बहुत सारी यातनाएं, अत्याचार तथा अथक अभ्यास से गुजरना पड़ता है, तब कहीं जाकर एक हिंदू देवता पैदा होता है।
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यह संविधान जिंदा है तो आपको आंदोलन करने की अनुमति भी देता है। एक बार यदि यह बदल गया तो आप वो भी नहीं कर सकोगे।
हो सकता है दूसरे विधान आपको इसकी इजाजत भी ना दें, अब समय सोचने का नहीं, करने का है।
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लोकोक्ति का अर्थ?
"कण कण में है बुद्ध भगवान"- भारत की भूमि को आप कहीं भी खोदो वहां बुद्ध भगवान की मूर्तियां ही निकलेंगी
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कल एक जातिवादी मटकी ने समाज के एक निर्दोष बच्चे की जान ली थी, 
आज समाज के कुछ अंधभक्त उसे सर पे सजाए घूम रहे हैं। तुम्हारी अज्ञानता ही तुम्हारी जान की दुश्मन है
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जो व्यक्ति काल्पनिक दैवीय मूर्तियों व चित्रों से अपना रोज़गार कमाता है या उनका प्रचार-प्रसार करता है वह समाज को अंधविश्वास में धकेलने के लिए बड़ा जिम्मेदार है।
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अंधभक्त उस वफादार कुत्ते की तरह होता है जिसकी वफादारी दूसरों के लिए खतरा होती है उसमें वैचारिक क्षमता नहीं होती और वो केवल अपने मालिक का ही अनुसरण करते हैं, चाहे वह अच्छा हो या बुरा।
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"झाड़ू" हाथ में थामोंगे तो सेवक बन गुलामी ही करोंगे।
देश का राजा बनना है तो "हाथी पर सवार होना होगा"
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घर की सफाई के लिए कोई भी साधारण झाड़ू खरीद लेना, 
लेकिन *"आप" कमल ब्रांड झाड़ू* खरीद कर देश को साफ़ ना करा देना।
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बहुजन समाज के लोग और इनके नेता इतने बचकाने तो नहीं कि यह बात ना जानते हो कि "आम आदमी पार्टी और बीजेपी" एक ही है।
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एक बार एक व्यक्ति ने एक साधु से उपाय पूछते हुए कहा कि-
"मुझे कोई ऐसा मार्ग बताए जिससे मैं समाज को धोखा भी देता रहूं और कोई मुझ पर शक भी ना करें"
साधु ने थोड़ा विचार किया और फिर बोला कि-
"तुम अपने सिर के बाल सफेद कर आम आदमी पार्टी में शामिल हो जाओ।"
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मौत के व्यापारियों ने कोरोना-योद्धा बनकर दलाली की और ना जाने कितने मासूमों और बेगुनाहों को टीकाकरण करा कर मौत के चंगुल में फंसा दिया है।
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कोई भी बहुजन समाज का व्यक्ति संस्कृत विषय का चयन ना करें अगर आप ऐसा करते हैं तो इसे बहुत जल्द पाठ्यक्रम से हटाया जा सकता है और मनुवाद को खुली चेतावनी दी जा सकती है