Saturday, 15 August 2020

लहराती पतंग - कविता


उड़ती, लहराती, बलखाती पतंग
हवाओं के परों पर खिलखिलाती पतंग

भुलाकर दिल से दुख और ग़म
चली है गगन को लेकर मन में उमंग
उठती-झुकती हृदय में लिए तरंग
हवाओं के --------------------------------

बहती पवन में यूं करती उधम्
चंचल गौरी जैसे पिया के संग
रास-रचाती थिरकती बनके नृतक
हवाओं के --------------------------------

धागे संग बंधी यूं हो मंडप में दुल्हन
लेती फेरे मिलाकर क़दम से क़दम
खुशी के बिखरे हैं चहो-ओर नवरंग
हवाओं के --------------------------------

बिताना चाहती है कुछ क्षण खुद के संग
हो गई घनी देर करते प्रेम-प्रसंग
जाना चाहती हो दूर होकर जैसे पिया से तंग
हवाओं के --------------------------------

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