मालूम होता ग़र ये खेल लकीरों का
तो ज़ख्मी कर हाथों को तेरी तक़दीर लिख लेता
हर रोज़ गुजरे हम मुश्किलों के दौर से
इन ख्वाहिशों ने शौक अपना मोहब्बत बना दिया
मैंने चंद रोज़ में देखे हैं कई मोड़ अनजाने
गुजरी है ज़िंदगी कई दौर से मेरी
ख़बर नहीं मुझको जो बात सताती है
बस बेखुदी में बेवज़ह दिल उन पे आ गया
पैदाइशी शौक है ख़तरों से खेलना
होता रहे सामना सो मोहब्बत कर ली
कुछ देर अपने दामन की छांव में ले ले
मैं ज़िंदगी के सहरा में भटका हूं बहुत दूर
ये ख्वाहिश लिए दिलों पे होगी हुक़ूमत अपनी
दौरे-शामत से गुजरे इस कशमकश में घिरकर
खुशनशीब हैं जो इसमें सुकूं पाते हैं
वरना मोहब्बत को आता नहीं ग़म देने के सिवा
इन दिनों गर्दिश में है सितारे अपने
वरना एहसान बांटे हैं बहोत खै़रात में हमने
_________________________
वीडियो देखने के लिए लिंक पर क्लिक करें :
https://youtu.be/uPdge9dBwFI
No comments:
Post a Comment