यह वास्तविक घटना दिल्ली के आर. के. पुरम गांव की है। गांव में एक व्यक्ति रहता था जो कि बाबा साहब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जी का बहुत बड़ा अनुयाई और भक्त था। वह सुबह सवेरे उठता तो सबसे पहले बाबा साहब की प्रतिमा को नमन करता था। दिन के किसी भी पहर जब भी वह किसी अन्य व्यक्ति से मिलता तो उसे "जय भीम" बोलकर सत्कार किया करता था। उसने बाबा साहब की अनेकों किताबों का अध्ययन कर बहुत बड़े पैमाने पर ज्ञान अर्जित किया था। बाबा साहब के विचार सदैव उसके मस्तिष्क पर छाए रहते थे।
एक रात की बात है जब वह गहन निद्रा में सोया हुआ था तो उसने एक सपना देखा जिसमें उसने ख़ुद को एक तालाब के किनारे पाया। उसने जैसे ही तालाब के अंदर पानी पीने के लिए अपना एक पैर रखा तो वहां पहले से ही घात लगाएं बैठे एक मगरमच्छ ने उसका पैर अपने जबड़े में दबोच लिया और धीरे-धीरे पानी के अंदर खींचने लगा। अब वह बहुत ज्यादा घबरा गया, उसे कुछ नहीं सूझ रहा था। उसने अपना पैर छुड़ाने का बहुत प्रयास किया परंतु असमर्थ रहा। पीड़ा ज्यादा होने के कारण उसके मुंह से एक आवाज़़ निकली "हे! बाबा साहब मुझे बचाओ।"
इतना कहते ही बाबा साहब हाथ में संविधान की किताब लिए वहां प्रकट हुए, और हाथ उठाकर मगरमच्छ को फटकारते हुए कहा- "हटो! दूर हटो, यह मेरा अनुयाई है।" बाबा साहब के ऐसे वचन सुनकर मगरमच्छ घबराकर दूर पानी की गहराई में चला गया। फिर बाबा साहब ने उस व्यक्ति का हाथ पकड़ कर उसे ऊपर उठाया और आधिकारिक रूप से अपने हाथों से पानी पिलाया।
दूसरे ही पल उस व्यक्ति की नींद टूट जाती है और वह स्वयं को अपने बिस्तर पर पाता है। उसी क्षण उसकी नज़र बाबा साहब की प्रतिमा व किताबों पर जाती है जो कि उसके कमरे में रखी हुई थीं। उनको देखकर उसके मुहं से सिर्फ एक ही बात निकलती है "जय भीम"।
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