Thursday, 10 September 2020

प्यार और आकर्षण | Love and Attraction - लेख/Article

किसी भी लिंग का सामान व विपरीत लिंग के प्रति झुकाव प्यार या आकर्षण कहलाता है किंतु वैचारिक दृष्टि से ये दोनों ही अवस्थाएं अलग-अलग होती हैं।

आकर्षण- आकर्षण एक ऐसी अवस्था जिसमें कोई व्यक्ति किसी दूसरे के प्रति उसकी किसी शारीरिक- जैसेः रंग-रूप, आंख, चेहरा आदि अंगों पर आकर्षित होता है। मानसिक- जैसेः कला, युक्ति, तर्क या कूट शक्ति आदि। व्यवहारिक- जैसेः बर्ताव, बातचीत का ढंग, आदर-सम्मान, अनुशासन आदि। शैक्षिक- जैसेः कलाकारी, पढ़ाई या अन्य किसी विषय में उपलब्धि आदि चीजों की तरफ आकर्षित होता है, आकर्षण कहलाता है। यह सदैव सीमित होता है और कुछ हद तक ही बढ़ सकता है।यह सच्चा व स्थाई नहीं होता। यदि किसी कारणवश आकर्षक व्यक्ति की प्राप्ति नहीं हो पाती है तो आप उसके विषय में गलत विचार करने लगते हैं और लोगों के सामने उनकी बुराई भी करते हैं। यदि आपका बर्ताव भी ऐसा ही है तो समझ लें कि वह आकर्षण ही है, और कुछ नहीं।

आकर्षण संवेगिक उद्दीपनों के बहाव में आकर व्यक्ति द्वारा जल्दबाजी में लिया गया कोई निर्णय है।

प्यार- वैसे तो प्यार की शुरुआत हमेशा आकर्षण से ही होती हैं। प्यार वह अवस्था है जिसमें हम किसी व्यक्ति को स्वयं के बराबर या उससे अधिक सम्मान या आदर देते हैं, और खुद से ज्यादा उसकी परवाह या चिंता करते हैं। प्यार में व्यक्ति पूजनीय होता है और प्रत्येक स्थिति में श्रेष्ठ भी होता है। प्यार सदैव असीमित होता है। सच्चा प्यार हमें अपनी सीमाओं में बांधे रखता है। प्यार करने वाले व्यक्ति को ठीक से कभी यह पता ही नहीं होता कि जिससे वो प्यार करता है वो उसे क्यों पसंद है? यदि सच्चा प्यार किसी कारणवश आपको नहीं मिल पाता है तो भी आप उनका भला ही चाहते हैं क्योंकि आप अपने प्रिय व्यक्ति को कभी भी दुखी गवारा नहीं करेंगे। आप उनका सदैव सम्मान करते रहेंगे और वो हर अवस्था में आपको याद आता ही रहेगा।

प्यार सुनने में छोटा सा लगता है किंतु अहसास में यह संसार से भी बड़ा है। यहाँ जो लिखा सो लिखा, किंतु मैं बता दूँ कि प्यार को यूँ चंद शब्दों से कभी भी परिभाषित नहीं किया जा सकता और ना ही इसे किसी पैमाने पर नियत किया जा सकता है।

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