मैं गुमनामियों के अंधेरे में खोया था अब तलक
ताज़्जुब है इस भीड़ में कोई मुझे पहचानता है
जो उम्रभर मेरा ना हो सका बदनसीबी देखो
मेरा ग़ैर का होने का बुरा मानता है
मिट चले मेरी नज़र से जिहालत के अंधेरे
वो शख़्स पराया है जो ख़ुद को मेरा मानता है
कोई ना पढ़ सका मेरे चेहरे की लिखावट के राज़
एक खुदा है जो मेरा हाल बखूबी जानता है
वैसे तो मेरी तबीयत में कोई फ़र्क नहीं आता
एक वो एक नज़र से मुझे लड़खड़ाने का हुनर जानता है।
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