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पहले मेरे दिल में वो शमां-ए-मोहब्बत जलाता रहा
फिर जुनून पे मेरे कामयाबी की राह बनाता रहा
जिसको लेकर गया था मैं एक रोज़ बुलंदी पर
वही पल-पल अपनी नज़र से मुझे गिरता रहा
वो मेरी हदे-तसव्वुर से गुजरता क्युं नहीं
नशा उसके अंदाज़ का उतरता क्युं नहीं
मैं हैरान हूं यूं सोचकर उसके बारे में
वक़्त के साथ हुस्न उसका ढलता क्युं नहीं
सारे सच उसके झूठ में बदलने लगे
यह सोचकर मेरी आंख से आंसू उतरने लगे
गले लगा कर करता था वो वफ़ा की बात
आज सोचा तो जिस्म से दम पिघलने लगे
जब तेरे भी दिल पे बन जाएगी
तू भी हमारी जगह आ जाएगी
तुझे सताने की तो मुझे बर्दाश्त की नेमत बक्शी है
ख़ुदा ने हर शख़्स को बड़ी फ़ुर्सत से बनाया है
वज़ह ऐसी के अपने लबों पे चुप्पी रखता हूं
मुझ पे इल्ज़ाम है मैं अपना हक़ जमाने लगता हूं
काश के ये झूठ नापने का कोई पैमाना होता
तो मेरे मुस्कुराने का राज़ उसने समझा होता
बादलों से कहदो उसके घर जाके बरसे
के याद हमारी भी उस बेख़बर को आए
के याद हमारी भी उस बेख़बर को आए
हम बेखुदी में, जिसको सज़दा रहे करते
कभी गौर से ना देखा, पत्थर का बुत है वो
कभी गौर से ना देखा, पत्थर का बुत है वो
देखो ये बे-मिस्ल फैसला खुदाई का
वो मुझे तोड़ते-तोड़ते खुद टूट गया
ज़फ़ा फ़रेब अश्क़ दर्द बढ़ जाएंगे मुश्किल की तरह
मुहब्बत के रास्ते मुस्तक़िल आएंगे संगमिल की तरह
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