Saturday, 29 August 2020

शायरी जो दिल छू ले | Shayari Jo Dil Chhoo Le




वो देते हैं नसीहत मोड लो कदम दर्दनांक राहे-उल्फ़त से
दलील जाहिर करती हैं तजुर्बा यूं ही नहीं बनता

देख कर साज़िश मेरे जिस्मो-ईमान की
होठ चुपचाप सहते रहे आंखों को गवारा ना हुआ

हमने चरागों को तालीम कुछ ऐसी दे रखी थी
के घर जल गए दुश्मन के इल्ज़ाम भी हवाओं पे गया

रौनक ना देखिए मेरी सूरत की ए जनाब
मेरे ग़म को छुपाने का राज़़ है ये

मत पूछ मेरी दास्तां-ए-ग़़म मुझसे
मैं बेवजह किसी के आंसू गिराना नहीं चाहता

झूठ नहीं कहता कईं मोहब्बत मैंने की
हासिल की उम्मीद ना रखी बस दिल तक ही रही

मैंने फिराई थी यूं ही रेत में उंगलियां
ग़ौर से देखा तो तेरा अक्स बन गया

कमबख्त़ रात को भी चिढ़ तुझसे हो गई
बैठू जो सोचने ढ़ल जाती है तावली

मुक़द्दर ही मेरा खराब है शायद
वरना खुशनसीब वो हैं जो उनके करीब हैं

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https://youtu.be/6Zo9A-DKFDQ

Wednesday, 26 August 2020

शायरी ज़रा हटके | Shayari Zara Hatke












मैंने हर सहर सैर सहरा-ए-शहर में की
ये सोचकर वो इक दिन रू-ब-रू होंगे

आंखें आंखों-आंखों में आंखों से मिलने लगी
आंखों से शर्माकर आंखें आंखों में झुकने लगी

जब कभी तन्हाई में तेरी याद ने सताया मुझे
बस मूंदकर आंखों को तेरी सूरत देखा किए

बदले में दिल के हमारा भी दिल गया
खोया कुछ नहीं दिल का करार मिल गया

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Tuesday, 25 August 2020

सिद्धूराम पहलवान - एक व्यंग



सिद्धू जी का मशहूर था पूरे गांव में नाम
पढ़ना-लिखना बेकार बस था पहलवानी का काम।
बार-बार एक ही कक्षा में फेल हो जाते
परीक्षा के समय भी अखाड़े में दिन बिताते।

चाहते खुद को अत्यधिक मजबूत बनाना
उनका सपना था पहलवानी में नाम कमाना।
एक बार ‘सत्यं‘जी इसका कारण पूछ बैठे तो-
बड़े ही रोब-दाब से बुलंद आवाज में ऐठे-

पहलवान हूं, फिर भी नहीं कोई महिला साथी
मिलता है दिल को सुकून, जब लड़कियां हाथ हिलाती।
कुश्ती के समय भी मैं उनसे नजरे नहीं हटाता
और उनको देखने के चक्कर में बार-बार चित हो जाता।

‘सत्यं' जी ने समझाते हुए, अरे छोड़ो! ये सब काम।
पहलवानी के नाम पर खुद हो जाते हो बदनाम।
पहलवानी से अच्छा, अंग्रेजी सीखी जाती।
तुम्हारे चार अक्षर बोलने पर लड़कियां दौड़ी चली आती।

सिद्धू ने सोचा यह नुस्खा आजमाऊंगा,
पांच-छह महीनों में अंग्रेजी सीख जाऊंगा।
लेकिन पढ़ने-लिखने में थे उनके पहले से ही टोटे
किया करते थे याद अध्याय को रोते-रोते।

पांच-छह महीनों में
‘येस-नो‘ पहचान गए और
साहब अपने मन में सोचा
पूरी अंग्रेजी जान गए।

एक बार थे वे एक शादी में जाए हुए
उस शादी में थे कुछ अंग्रेज आए हुए।
अंग्रेजन ने हाथ मिलाकर पूछा सिद्धू से नाम
पांच-छह महीनों में जो रटा था बोलकर चला दिया उससे काम।

अंग्रेजन ने कहा- ‘अंग्रेजी नहीं आती तो हिंदी में बात करो‘
सिद्धू बोला- यूं
मैडम फुल अंग्रेजी आती है,
इस बात से ना डरो।

आपने नाम पूछने में ही चार शब्दों से काम चला दिया
और मैंने उत्तर में अबतक जो रटा था पढ़कर सुना दिया।
मुझे लगता है- आप अंग्रेजी सीख रही हैं
तभी तो बोलने में थोड़ी-थोड़ी हिचक रही हैं।

ऐसी हरकत देख उसका अंग्रेज पास में आया
और पकड़कर सिद्धू को जमाकर घुसंड लगाया।
नीचे गिरते ही सिद्धू को याद आ गया अखाड़ा
और उठाकर अंग्रेज को पटक-पटककर मारा।

सिद्धू बोला- ससुरी
यह अंग्रेजी हमको ना भाइ।
फिर भी अपने टेम पर
पहलवानी काम में आई आई।

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Monday, 24 August 2020

अंजान मुहब्बत - एक दिलचस्प कहानी

एक लड़का जो कि एक लड़की से अत्याधिक प्रेम करता था मग़र कभी भी उसके सामने कह नहीं पाया। उसके लिए एक मात्र सहारा थी वो, खुद से भी ज्यादा उसे प्रेम करता था। लड़की उससे हमेशा ही उससे दूरी करती और नज़रे झुकाकर बेरूख़ी करती थी। जिसे वह सहन नहीं कर पाता था और खुद को धिक्कारता था। वह लड़की को अपनी बेबसी समझता था और जानते हुए कि वह शायद कभी भी उसे पा नहीं सकेगा तो भी उसे बेइंतहां प्रेम करता था।

एक दिन अचानक उस लड़के को ख़बर मिलती है कि उस लड़की की सड़क पार करते समय एक गाड़ी से दुर्घटना हो गई है और वह अस्पताल में भर्ती है।

वह ख़बर सुनते ही चौंक पड़ा और निर्देशित अस्पताल के लिए दौड़ता है। अस्पताल पहुंचकर वह देखता है कि लड़की मूर्छित दशा में बिस्तर पर लेटी हुई है। वह डॉक्टर की आज्ञा से उसके कमरे में प्रवेश करता है और तो पाता है कि दुर्घटना में उसका दाईं तरफ से चेहरा काफि बुरी तरह से जख्मी हो गया है। उसे यह देखकर काफि दुख होता है मानो उसकी जान ही निकल गयी। लेकिन वह यह सब देखकर स्वयं को नहीं बदलता और कल के जैसी ही उसे प्रेम करता है और अस्पताल से चला जाता है। अब वह लड़की का ठीक होने तक बेक़रारी से इंतेज़ार करता है और फिर 2 महीने 12 दिन पश्चात वह उससे मिलता है। लेकिन लड़की उससे मिलना नहीं चाहती फिर भी आज वह सारे पहरे तोड़कर उससे मिल ही जाता है और कहता है ‘मैं आज भी आप से उतना ही प्रेम करता हूँ जितना कि कल करता था’ क्योंकि हृदय से उत्पन्न हुआ प्रेम कभी भी बदला नहीं करता। आज अग़र मैं आपको इस हाल में छोड़ जाऊँ तो ये मेरे कल के सच्चे प्रेम की तौहीन होगी। और फिर कहता है कि ‘मैं आपको अपनी जि़ंदगी में लाना चाहता हूँ’। अब लड़की अपनी चुप्पी तोड़ती है और समझाते हुए कहती है कि ‘तुम कोई दूसरी लड़की देखकर अपनी नई व अच्छी जि़ंदगी की शुरूआत करो क्योंकि अब मैं तुम्हारे क़ाबिल नहीं रही और मैं जानते हुए तुम्हारी जिंदगी बर्बाद नहीं कर सकती क्योंकि कल तक मैं भी तुमसे अत्याधिक प्रेम करती थी लेकिन समाज व खुद से डरती थी कि कहीं मैं स्वयं को न संभाल पाऊं और बहुत आगे निकल जाऊ’।

लड़की के ऐसे शब्द सुनकर लड़का बहुत खुश होता है और सोचता है कि जिसे मैं इतना दूर समझता रहा वो मेरे दिल के कितने करीब थी और उसे लगा कि आज जैसे उसने सब कुछ पा लिया। उसकी आँखें नम हो गई, मानो उसकी सारी उम्मीदें व चाहते पूरी हो गईं।

तो इस पर वह लड़का कहता है कि ‘अग़र आप सचमुच मेरी जि़ंदगी बर्बाद नही करना चाहती तो मेरी जि़ंदगी में आ जाओ’। लड़की की आँखें आँसुओं से तर हो गईं। और फिर दोनों की रज़ामंदी से 1 वर्ष 2 महीने पश्चात उनकी शादी हो गई।

Sunday, 23 August 2020

भुला नहीं सका जिसे - कविता

मैंने देखा था उसे भुला नहीं सका जिसे।
नैंनों से क्षणभर भी औझल नहीं किया जिसे।।

मुझें अच्छी तरह याद है, वो दिन का पहर
घन थे गगन मे उमड़े, शीतल थी दोपहर।
मनमोहक, आकर्षक वातावरण था और
मंद गति में वायु लहरत-लहर

मैंने देखा था उसे ---------------------------

उसे देखा था एक यात्रा पर लकडियाँ काटते हुएँ
शांत, सरल-स्वभाव सहित कार्यरत होते हुए।
मुख-मंडल पर ओज धरे, लीन थी
कर्म कर्त्तव्य समझते हुए।।

मैंने देखा था उसे ---------------------------

प्रसन्नचित आँखें, आकर्षण परिपूर्ण
युवा अवस्था में प्रवेश पाया था।
सावल तन में योग्यता थी और
यौवन सिर मंडराया था।।
मैंने देखा था उसे ---------------------------

आकर्षक रूप किंतु संस्कार का पहरा था
आँखें सुंदर, रंग झील-सा गहरा था।
ना कर सका उसकी समानता किसी से
व्यर्थ संसार यह सारा था।

मैंने देखा था उसे --------------------------- 

मैं एक वृक्ष की छाँव से उसे निहार रहा था
देखा मुझे तो स्वयं में सिमटने लगी।
नैंन झुकाएं, दृष्टि बचाई
तदोप्तरांत कार्य करने लगी।।

मैंने देखा था उसे ---------------------------

आज भी स्वप्न में, मैं देखता हूँ उसे
मेरे पहले प्रेम ने चुना था जिसे।
ये जात-धर्म ही ना झुक सकें
हृदय न्यौछावर तो कर दिया था उसे ।।

मैंने देखा था उसे -----------------------------


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https://www.youtube.com/watch?v=GYTBOGLI_no

Saturday, 22 August 2020

प्यार को त्याग भी कहते है - कविता


एहसास प्रिय मेरे मन को
जिस पल तुम्हारा होता है
मन सोचता रह जाता है
बहुत दूर कहीं खो जाता है

मन करे गगन को उड़ जाऊं
और बादलों के घर जाऊं
मैं थाम-थाम के राहों में
मदमस्त पवन से बतलाऊं

ए बहारों, दिशाओं कहों
तुम्हें पहले तो ना देखा संवरते हुए
या खींचता है तुमको भी कोई
प्रेम के स्पर्श इशारों से

क्यों मन चाहता है छूना
अज्ञात बातें भी करना
निहारना अखंड समय तक और
हृदय में छिपाकर रखना

क्या है ये? क्यों है ये? और
क्यों मैं बहक-सा जाता हूं
अनजान कशिश होती हैं पर
कुछ भी समझ ना पाता हूं

सारे संजोय स्वप्न मेरे
एक पल में अधूरे लगते हैं
जब याद कभी आ जाता है कि
"प्यार को त्याग भी कहते है"

Friday, 21 August 2020

जी चाहता है... - Ghazal




हो ना जाऊं दूर तुझसे ए मेरे सनम
सांस बनके तुझमें समा जाने को जी चाहता है

तेरी दूरियां सही जाने की हिम्मत नहीं मुझमें
लहू बनके तेरी रगों में बह जाने को जी चाहता है

एक मेरे सिवा ना आए तुझे कोई नज़र हरसू
कुछ इस कदर तेरे दिल में उतर जाने को जी चाहता है

हर ख़्वाहिश ग़ुम जाती है तेरा दीदार होते ही
बनाके ख़ुदा तुझे सज़दा किये जाने को जी चाहता है

कभी देख ले तू मेरा इम्तिहान लेकर
तेरे लिए हद से गुजर जाने को जी चाहता है

मुझे ज़िंदगी ने पल-पल रुलाया है बहुत
तेरा साथ पाके हंसते चले जाने को जी चाहता है

तू भी तो देख एक बार मोहब्बत करके मुझसे
तुझे जिंदगी में अपनी लाने को जी चाहता है

ए सनम अब तू भी तो कोई जवाब दे
क्या अभी तुझे मेरा दिल तोड़ जाने का जी चाहता है?

Monday, 17 August 2020

काश! ऐसा होता। - कविता




एक प्रातः ऐसी थी
जब समस्त दिशाएँ महकी थी
वातावरण शुद्ध, शीतल, सुगंधयुक्त
हरयाली बिखरी दिखायी देती थी।

मैं अपने-पन में प्रसन्न, मग्न
मस्त तरंगों में बहा जा रहा था
चला जा रहा था बढ़ता ना जाने कहाँ
हवाओं के परों पर खिलखिला रहा था।

चौंक उठा उस दृश्य को देख
जब मेरे सामन कोई आ ठहरा था
दृष्टि चूम भी ना पायी मुखमंडल को उसके
बिखरें काले कैश का पहरा था।

मुझे देखा मुस्कुराकर, दूर चलने लगी
आत्मा को भी मेरी छलने लगी
मेरे मन की जिज्ञासा तीव्र बढ़ने लगी
पूछ बैठा ‘तुम अप्सरा हो या परी’?

मौन साधे सुकोमल होठ
ना उत्तर में हिल पायें
उठते-झुकते तिरछे नैन बस
निरंतर उत्तेजित करते जायें।

जब हुई उनकी कृपा मुझपे
मन के विचार सारे खो गये
चकित ही रह गया स्वयं में
मानो स्वर्ग के दर्शन हो गये।

न्यौछावर हो चला एक क्षण में
मैंने स्वयं को जैसे खो दिया
उनकी लुभाती कलाओं ने जब
प्रेम का संदेश दिया।

उत्सुक हो ज्यो ही मैं आगे बढ़ा
तभी गाल पर कसकर एक थप्पड़ पड़ा
सुबह-सवेरेे माताजी को देखा सामने खड़ा
वो प्रातःकालीन स्वप्न मुझें बहुत मेहंगा पड़ा

Saturday, 15 August 2020

लहराती पतंग - कविता


उड़ती, लहराती, बलखाती पतंग
हवाओं के परों पर खिलखिलाती पतंग

भुलाकर दिल से दुख और ग़म
चली है गगन को लेकर मन में उमंग
उठती-झुकती हृदय में लिए तरंग
हवाओं के --------------------------------

बहती पवन में यूं करती उधम्
चंचल गौरी जैसे पिया के संग
रास-रचाती थिरकती बनके नृतक
हवाओं के --------------------------------

धागे संग बंधी यूं हो मंडप में दुल्हन
लेती फेरे मिलाकर क़दम से क़दम
खुशी के बिखरे हैं चहो-ओर नवरंग
हवाओं के --------------------------------

बिताना चाहती है कुछ क्षण खुद के संग
हो गई घनी देर करते प्रेम-प्रसंग
जाना चाहती हो दूर होकर जैसे पिया से तंग
हवाओं के --------------------------------

तुम भी मुझको याद करोगी - कविता



बेशक आज मुंह मोड़ो अपना
मिलने की फ़रियाद करोगी।
दिल में बसा है प्यार तुम्हारा
एक दिन यह स्वीकार करोगी।

हां तुम भी --------------------------

जिस तरह पल-पल मैं मरता हूं
ग़म में तुम भी याद जलोगी।
सूरत ना मेरी देख सकोगी
बेबस होकर हाथ मलोगी।

हां तुम भी --------------------------

प्यार को मेरे समझोगी जिस दिन
हाज़िर खुद की जान करोगी।
खुद ही खुद में मर जाओगी
जिस दिन मुझे एहसास करोगी।

हां तुम भी --------------------------

जिस दिन लगन बेक़रार करेगी
दीदार मेरा कई बार करोगी।
पलभर भी जुदाई ना भाएगी तुमको
आंखों में बसाकर प्यार करोगी

हां तुम भी --------------------------


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Friday, 14 August 2020

PM बदलने वाला है - कविता



सवेरा होने वाला है, पीएम बदलने वाला है
छुपता सूरज खुशहाली का, निकलने वाला है

हाथी फिर जाएंगे रण में
हाथ उठेंगे सहारे को
बहुत जल्द इस दौर का मंजर,
बदलने वाला है

सवेरा होने वाला है .................…............

जो फैला आसमां दूर तक
इंसानियत भी नीली होगी
कर्ता-धर्ता, विधाता भारत के हम
भाग्य संवरने वाला है

सवेरा होने वाला है .................…............

इस तपते सफर के बाद
ठंडी रात का मौसम होगा
वहशीयाना यह सफेद रेगिस्तां,
गुजरने वाला है

सवेरा होने वाला है .................…............

अर्शोफर्श सब नीला होगा
हाथों में संविधान लिए
ये कारवां हर घर से
निकलने वाला है

सवेरा होने वाला है .................…............

Thursday, 13 August 2020

Best Sher ever (Diwan E Satyam)













हम बेखुदी में जिसको सज़दा करते रहे
कभी ग़ौर से ना देखा पत्थर का बुत है वो


तू दे सज़ा उनको या ख़ुदा ऐसी

के प्यार उनका भी किसी बेख़ुद पर आए


कह दे ख़ुदा उनसे चले आए मुझसे मिलने

आंखे झपकती है मेरी कहीं देर ना हो


मैंने कसम उठायी थी ना ग़ुनाह करने की

मालूम ना था लोग मोहब्बत को ज़ुर्म समझते हैं


शायद आज मेरी दुआ रंग ला रही है

मैंने तड़पते देखा है उसे किसी के प्यार में


तुम बैठी रहो देर तक मेरी नज़रों के सामने
आज मेरा मन है बहुत मदहोश होने का


कईं मोड़ से गुज़रे राहे उल्फ़त में 'सत्यं'

सोचा था मैंने यूं आसानियां होंगी


उन्हें मालूम हो गया हमें सुकून मिलता है

तो ज़ालिम हंसी भी अपनी दबाने लगे

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Teeth - A Tool, Not a Habit

Teeth are an important part of human beings. With the help of which human beings can easily do the work of eating food, cutting thread and peeling off some things. The maximum number of them in the mouth can be thirty-two (32), out of which there is no set time for the growth of two teeth and both of them are called 'wisdom teeth'.

Teeth never prove that - what will a tooth-fed creature eat? Because in ancient times only human flesh was eaten. Because he did not have knowledge about other foods. As he had knowledge about other foods and humanity, he changed his needs according to his thinking and gave proof of being an intellectual.

Teeth have no relation with eating meat because the bird vulture, which does not have a single tooth in its beak, does not eat anything other than life meat. This tendency is based on need, environment and generosity (affection) and it may be that the flesh-eating organisms are living in an environment that is not favorable for them or that the full development of their intelligence due to the presence of unfavorable genes. Did not happen that do not understand the fate of humanity.

Mother of India ‘Shudra’

    On the basis of Harappan civilization, Dravidian caste, Ved-Purana and Puranic elements, every woman living in India is of Shudra (non-Aryan) i.e. Dravidian caste.

    History is witness that when the Aryans came from Central Asia for the purpose of looting India, these people did not bring even a single woman with them like Arab-looters. He discovered iron and then married the Dravidian women who had won the war of the indigenous people on the strength of arms and established Brahmanism by establishing his suzerainty over Swastha by becoming a resident here. They also put women in the category of Shudras and like men and Shudras, they also imposed strict rules like slavery, illiteracy and injustice etc. Women were used only to produce children and to exploit them physically. Today, every caste and religion of people living in India, whether they are Brahmins, Kshatriyas, Vaishyas or Shudras, every woman in their family belongs to Shudra caste. Now this thing Probe has also been proved.

    I want to tell the residents of India that in the future if someone hates the Shudras, first of all they should do with their mother-sister or other women of the family, because the woman from whose stomach she is born is also of a Shudra caste. It is only, if they cannot do this, then they have no right to disturb the nationality and unity of India.

All women should respect each other because she is the mother of India and a Shudra.