सिद्धू जी का मशहूर था पूरे गांव में नाम
पढ़ना-लिखना बेकार बस था पहलवानी का काम।
बार-बार एक ही कक्षा में फेल हो जाते
परीक्षा के समय भी अखाड़े में दिन बिताते।
चाहते खुद को अत्यधिक मजबूत बनाना
उनका सपना था पहलवानी में नाम कमाना।
एक बार ‘सत्यं‘जी इसका कारण पूछ बैठे तो-
बड़े ही रोब-दाब से बुलंद आवाज में ऐठे-
पहलवान हूं, फिर भी नहीं कोई महिला साथी
मिलता है दिल को सुकून, जब लड़कियां हाथ हिलाती।
कुश्ती के समय भी मैं उनसे नजरे नहीं हटाता
और उनको देखने के चक्कर में बार-बार चित हो जाता।
‘सत्यं' जी ने समझाते हुए, अरे छोड़ो! ये सब काम।
पहलवानी के नाम पर खुद हो जाते हो बदनाम।
पहलवानी से अच्छा, अंग्रेजी सीखी जाती।
तुम्हारे चार अक्षर बोलने पर लड़कियां दौड़ी चली आती।
सिद्धू ने सोचा यह नुस्खा आजमाऊंगा,
पांच-छह महीनों में अंग्रेजी सीख जाऊंगा।
लेकिन पढ़ने-लिखने में थे उनके पहले से ही टोटे
किया करते थे याद अध्याय को रोते-रोते।
पांच-छह महीनों में
‘येस-नो‘ पहचान गए और
साहब अपने मन में सोचा
पूरी अंग्रेजी जान गए।
एक बार थे वे एक शादी में जाए हुए
उस शादी में थे कुछ अंग्रेज आए हुए।
अंग्रेजन ने हाथ मिलाकर पूछा सिद्धू से नाम
पांच-छह महीनों में जो रटा था बोलकर चला दिया उससे काम।
अंग्रेजन ने कहा- ‘अंग्रेजी नहीं आती तो हिंदी में बात करो‘
सिद्धू बोला- यूं
मैडम फुल अंग्रेजी आती है,
इस बात से ना डरो।
आपने नाम पूछने में ही चार शब्दों से काम चला दिया
और मैंने उत्तर में अबतक जो रटा था पढ़कर सुना दिया।
मुझे लगता है- आप अंग्रेजी सीख रही हैं
तभी तो बोलने में थोड़ी-थोड़ी हिचक रही हैं।
ऐसी हरकत देख उसका अंग्रेज पास में आया
और पकड़कर सिद्धू को जमाकर घुसंड लगाया।
नीचे गिरते ही सिद्धू को याद आ गया अखाड़ा
और उठाकर अंग्रेज को पटक-पटककर मारा।
सिद्धू बोला- ससुरी
यह अंग्रेजी हमको ना भाइ।
फिर भी अपने टेम पर
पहलवानी काम में आई आई।
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