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Tuesday, 8 October 2024

समंदर से भी यार यारी रखा करो (Ghazal)


समंदर से भी यार यारी रखा करो
या उस पार जाने की कोई तैयारी रखा करो

घर जाओ तो आईना जरूर देखना
अपनी भी थोड़ी जिम्मेदारी रखा करो

संभलकर उडो आसमानों की ऊंचाई पर
श्येन से भी अपनी पहरेदारी रखा करो

पेड़ लगाए हैं तो पत्थरबाज़ों से रहो होशियार
कच्चे फलों पे भी थोड़ी निगरानी रखा करो

हमें यह पता चला तो चला के वो बेवफा है
आईने तुम ना इस कदर जी भारी रखा करो

घर के अंदर दग़ाबाज़ भी दुश्मन से काम नहीं
चिरागों पे अपने रोशनी बहुत सारी रखा करो


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Saturday, 21 September 2024

Sher (2 lines)










ये जरूरी नहीं हर बात शक़्ल ए अल्फाज़ ही हो
मोहब्बत में खामोशी भी हाले-दिल बयां करती है

अब मैं अपने होठों को प्यासा नहीं रखता
कई सहराओं से गुज़रा हूं दरिया तक आने में

मुहब्बत क्या है यह बीमार को पता है
दवा है या ज़हर है तजुर्बेकार को पता है

मंजिल और कितनी दूर है मोहब्बत की
अभी और कितना सफ़र में मुझे चलना होगा

क्या तुमने 'सत्यं' को ख़ाक समझ रखा है
इश्क़ फिर से, कोई मजाक समझ रखा है

ना जाने आजकल ये क्या हो गया है मुझे
पहले आईना देखता हूं फिर देखता हूं तुझे

Saturday, 14 September 2024

नक़ाब शायरी

















यूं आसान नहीं होता सच झूठ समझ पाना
कईं नक़ाब पड़े हैं इक चेहरे पे आजकल

कब तक मुझें पाबंदियों कि हयात में जीना होगा
किस फ़र्ज़ से गै़रत के नाम जहन्नुम में जीना होगा

रुख़ से नक़ाब हटाकर नज़र अंदाज़ करती हो
माज़रा क्या है जो हिजाब से दीदार करती हो?

Friday, 13 September 2024

यह रखना याद मुनाफ़े की तिजारत के वास्ते।
इश्क की नई दुकानों पे कीमत सस्ती होती है।।


Tuesday, 9 July 2024

वो छोड़ गया मुझे (Nazm)














वह जा चुका, मुझे अपनी गिरफ़्त से निकाल के
हम ही उलझे हुए हैं जाल में, सिर अपना डाल के

वैसे तो वो ग़ैर से भी खुलके मिलता है
हम ही आदमी ना निकले, उसके ख़्याल के

उसका रिश्ता फक़्त सुफ़ेद झूठ पे टिका था
कैसे मुकम्मल देता ज़वाब वो, मेरे सवाल के

उस बे-मुरव्वत ने बेरुख़ी की इंतिहा कर दी
हम देखते रहे तमाशे, उसके कमाल के

उम्रभर की चाहत का बदला हमको यूं मिला
हिस्से में आए किस्से बस, उसके मलाल के

अब जो मिला है तजुर्बा उसे खोकर तो ये जाना
मोहब्बत में उठते हैं क़दम, बहुत देखभाल के

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Saturday, 29 June 2024

मेरे जाने के बाद | Mere jane ke baad (Ghazal)






ये रास्ते, ये फ़िज़ाएं, यहीं रह जाएंगे, कल के लिए
और रह जाएंगी मेरी यादें, मेरे जाने के बाद

हमें कमसिनी में घर से निकाला गया था, बे-कसूर
मेरे वालिद ने ये बताया था, जी भर आने के बाद

तुम्हें आंख भरके कोई ना देखेगा, ज़माने में
बहुत रुलाएंगी कुछ बातें, मां-बाप गुजर जाने के बाद

अब वो बद-मिज़ाज बर्दाश्त की हद से गुजरने लगा
आ गया है यह सलीक़ा उसे, बेटी घर आ जाने के बाद

मैंने भी अब अपने दिल को, पत्थर का कर लिया
मयख़ाना चला जाता हूं, उसकी याद आ जाने के बाद

मैं अक्सर सोचता हूं, कोई ग़ज़ल अपने हालत पे लिखूं
मोहब्बत ही लिख जाता है, कलम हाथ में आ जाने के बाद

यह जो गुरूर है मेरा बस बेरुख़ी पे टिका है
उतर जाता है नशे-सा, मोहब्बत से बुला लेने के बाद

उलझ-उलझ-सी गई ज़िन्दगी, सबको अपना कहते-कहते
आसान बनाया है इसे, सबको औकात पे लाने के बाद

पुरानी ईट सही हम के बे-कद्री से ना फेंक
हमें ही अलग कर रहे हो, हमसे सर छुपाने के बाद

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Monday, 17 June 2024

तेरे जाने के बाद (नज़्म) Nazm
















सोचा ना था मैं बिखर जाऊंगा, तेरे जाने के बाद
आज फिर याद आ रहा है तू, तेरे जाने के बाद

फिर ग़म ने ली है करवट, तुझे भूलाने के बाद
हम अक्सर रोते हैं तन्हाई में, तेरे जाने के बाद 

सफ़र तन्हा ही है हमारा, तेरा ना आने के बाद
दिन-सहरा रात-क़यामत है, तेरे जाने के बाद

उठते हैं दुआ में हाथ मेरे, याद तेरी आने के बाद
बिगड़ते जा रहे हैं हालात मेरे, तेरे जाने के बाद

रुला गया तू उम्रभर को, एक-पल हंसाने के बाद
बे-दिली ओढ़ ली है मैंने, तेरे जाने के बाद

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Wednesday, 29 May 2024

अब और क्या बाकी रहा कमाने में












उलझी-सी एक शाम मेरी ढली है कई ज़माने में
हम खोए हुए थे बरसो से उस शहर पुराने में

वो जैसा भी है उसे वैसे ही क़ुबूल कर
जिंदगी रूठ जाती है, बेवजह आज़माने में

हमने उतरन को भी बदन पे शौक़ से औढ़ा
दुनिया सुकून ढूंढ रहा थी, नए पुराने में

मेरे सिरहाने पर दो चिराग कर रहे थे उजाला
अंधेरे कामयाब हो गये मुझे रुलाने में

गुनहगारों से भरा यह जो शहर है
यहां हर-एक लगा है, दूसरे की कमी गिनाने में

ये सिलसिला कोई कल की बात तो नहीं
माहताब रोशन है आफ़ताब से, हर ज़माने में

साहिब-ए-मसनद को गुमां है, झूठी हवाओं पे
लगे हैं नादान, मुरझाएं गुल खिलाने में

मैंने रिश्ते संजोए, मुक़द्दर संवारे, सबको साथ रखा
अब और क्या बाकी रहा कमाने में

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Tuesday, 7 May 2024

बाज़ (शायरी)
















चंद कौऔं पे नई-नई रवानी छाई है
बाज़ से उलझ रहे हैं, मौत कब्र तक ले आई है

यूं ही नहीं कोई किसी से किनारा करता है
बाज़ बुलंदी पे होता है तो अक्सर अकेला होता है

कल मेरी उड़ान बुलंदियों को चूमेगी।
अभी मैं अपने नाखूनों-परों को नोच रहा हूं।।

हवा चाहे किसी भी ओर उड़े ज़माने की
फ़लक की हुक़ूमत सदा श्येन के क़दमों में रहती है








Monday, 15 April 2024

ग़मगीन शायरी




पहले मेरे दिल में वो शमां-ए-मोहब्बत जलाता रहा
फिर जुनून पे मेरे कामयाबी की राह बनाता रहा
जिसको लेकर गया था मैं एक रोज़ बुलंदी पर
वही पल-पल अपनी नज़र से मुझे गिरता रहा

वो मेरी हदे-तसव्वुर से गुजरता क्युं नहीं
नशा उसके अंदाज़ का उतरता क्युं नहीं
मैं हैरान हूं यूं सोचकर उसके बारे में
वक़्त के साथ हुस्न उसका ढलता क्युं नहीं

सारे सच उसके झूठ में बदलने लगे
यह सोचकर मेरी आंख से आंसू उतरने लगे
गले लगा कर करता था वो वफ़ा की बात
आज सोचा तो जिस्म से दम पिघलने लगे

जब तेरे भी दिल पे बन जाएगी
तू भी हमारी जगह आ जाएगी

तुझे सताने की तो मुझे बर्दाश्त की नेमत बक्शी है
ख़ुदा ने हर शख़्स को बड़ी फ़ुर्सत से बनाया है

वज़ह ऐसी के अपने लबों पे चुप्पी रखता हूं
मुझ पे इल्ज़ाम है मैं अपना हक़ जमाने लगता हूं

काश के ये झूठ नापने का कोई पैमाना होता
तो मेरे मुस्कुराने का राज़ उसने समझा होता

बादलों से कहदो उसके घर जाके बरसे
के याद हमारी भी उस बेख़बर को आए

देखो ये बे-मिस्ल फैसला खुदाई का
वो मुझे तोड़ते तोड़ते खुद टूट गया

Wednesday, 20 March 2024

मजबूरियां शराफ़त को भी ले आती है बाज़ार में

















जरूरत कैसी-कैसी निकल आती है घर-बार में
मजबूरियां शराफ़त को भी ले आती है बाज़ार में

साथ रखना हमेशा बुजुर्गों को अपने
ज़ंजीर रिश्तो की पड़ी रहती है परिवार में

आज न जाने क्या ग़रज़ निकल आई
परिंदा ख़ुद ही सर पटकने लगा है दीवार में

यह कैसी सज़ा मुझें वो शख़्स दे गया
जान बख़्श दी मेरी उस क़ातिल ने पलटवार में

ना दिखाया करो डर सैलाबों का सरफ़रोशों को
हमारे हौसले से ज़्यादा धार नहीं तुम्हारी तलवार में

वज़ह ऐसी के अपने लबों पे चुप्पी रखता हूं
मुझपे इल्ज़ाम कई लगे हैं मोहब्बत के कारोबार में

इन ख़्वाहिशों के शहर में बह रही है आंधियां
किशती साहिल पे आ जाएगी ग़र हिम्मत हो पतवार में

Saturday, 16 March 2024

पहली बार का नशा रहता है













क्या सितम है तेरे आने का ख़्याल बना रहता है
तू मेरा है कि नहीं यही सवाल बना रहता है

तेरे चेहरे में ऐसा क्या है ये तो मालूम नहीं
फिर एक तुझपे ही क्युं मेरा ध्यान लगा रहता है

जब कभी भी देखता हूं मैं पलट कर तुझे
हर बार वही पहली बार का सा नशा रहता है

लोग हंसते हैं मुझपे तेरा नाम ले लेकर
ये क्या कम है, तेरे नाम से मेरा नाम जुड़ा रहता है

उसकी आंखें सुर्ख़ बनी रहती है आजकल
क्या वो भी मेरी तरह रातभर जगा रहता है

लोग आते हैं ग़म भुलाते हैं चले जाते हैं
यह मकान यूं ही वीरान बना रहता है

अब समंदर भी मुंह देखकर पानी पिलाने लगा
प्यासा आजकल बस किनारे पे खड़ा रहता है

Tuesday, 12 March 2024

सियासत शायरी










कुछ ऐसी सोच माहौल की बना देनी चाहिए
उठती हर आवाज़ दबा देनी चाहिए
जरूरी नहीं के शमशीर क़त्ल के वास्ते ही उठे
कभी-कभी दहशतगर्दी के लिए भी लहरा देनी चाहिए

अभी तुम्हारा ओहदा निचले दर्जे का है।
अभी तुम्हें सियासत के मायने मालूम नहीं।।

मेरी इन खुश्क आंखों ने एक सदी का दौर देखा है
कब्रिस्तान में लेटी लाशों का नज़ारा कुछ और देखा है

तुम सजदा करो उसे लिहाज़ ना हो, ग़र ये मुमकिन है
फिर कैसे किसी बुत को तुम ख़ुदा बनाते हो?

यूं आसान नहीं होता, सच झूठ समझ पाना
कईं नक़ाब पड़े हैं, एक चेहरे पे आजकल

कब तक मुझें पाबंदियों कि हयात में जीना होगा
किस फ़र्ज़ से गै़रत के नाम, जहन्नुम में जीना होगा

ज़िंदगी शायरी

















जिनके हाथ तजुर्बे से भरे होते हैं
जिंदगी के खेल में माहीर वही लोग बडे होते हैं
साथ रखना हमेशा बुजुर्गों को अपने
बलाएं छूती नहीं, जिन हाथ में ताबीज़ बंधे होते हैं

एक उलझन-सी है जो रास्ता भटका देती है
उलझी बात को और उलझा देता है
हवाएं ऐसी भी है यहां जो छुप‌ के चलती हैं
कोई भटकती चिंगारी जहां मिली, सुलगा देती है

परिंदे याद करेंगे, ढूंढेंगे मेरा निशां
कुछ इस क़दर उनके ज़ेहन में उतर जाऊंगा
लोग लगे हैं काटने इस बरगद की जड़ें
मैं शाखों से उग जाऊंगा

ये मंजर भी एक रोज़ दिखलाऊंगा उसे
एक सरफ़रोश से रू-ब-रू कराऊंगा उसे
अभी एक हुकुम का इक्का बाकी है मेरी आस्तीन में
जब खेल ख़त्म करना होगा तो खेल जाऊंगा उसे

जरूरत कैसी-कैसी निकल आती है घर-बार में
मजबूरियां शराफ़त को भी ले आती है बाज़ार में

आज न जाने क्या ग़रज़ निकल आई
धरती की तरफ़ आसमां पिंघलने लगा

दर्द-ए-इश्क में मैं बद-हवास तो नहीं
लाइलाज हूं, बद-ज़ात तो नहीं

चार दिन लाए थे खुदा से लिखवाकर हयात में
दो सनम-परस्ती में गुजर गए, दो खुदा-परस्ती में

समंदर बड़ी खामोशी से जख़्मों को छुपाता हैं
दरिया थोड़ा बह लेती है तो रो देती है

कैसी तौबा, कैसा सजदा, बेगुनाह के लिए
सब बेईमानी लगती है एक तन्हा के लिए

यह शहर भी बड़ा अजीब है मसीहाओं का
गुनहगार बेगुनाहों को आइना दिखा रहे हैं

मेरी ग़ैरत से ना इस कदर उलझा करो तुम
जब उतरती है तो लोग नज़र से उतर जाते हैं

एक तो ग़मे-आशिक़ी और ये मुफ़लिसी
सितम इतना ना जी सकता हूं, ना पी सकता हूं

मुश्किल है वफ़ा-ए-गुल की ज़मानतदारी
सुबह महकता हैं, शाम तक मुरझा जाता हैं

डूबे रहते हैं कई राज़ समंदर के सीने में
उलझी हैं कईं दरियाँ इसकी गहराई में

यह हमारी गलती थी हमें आज पता चला
दुनिया घूमनी थी जब एक मक़ाम पे बैठे रहे

Saturday, 9 March 2024

बरसों की शनासाई

एक शख़्स की और मेरी शनासाई है, लड़ाई है
दुनिया की ना माने तो वो प्यार भी कर सकता है

सुना है वो शख़्स कान का बहुत कच्चा है
किसी ग़ैर की बातों पे एतबार भी कर सकता है

अपने दिल की बात कहने से पहले कईं दफ़ा सोचो
सामने वाला बेफ़िक्री से इंकार भी कर सकता है

उससे इश्क में सब कुछ ला-हासिल लगा मुझे
काम पे रखने से पहले ख़बरदार भी तो कर सकता है

वो रहता है हमेशा दुश्मनों के साथ मिलकर
वो चाहे तो मुझे होशियार भी कर सकता है

उसी का हाथ है यारों साज़िश-ओ-नवाज़िश में
वो साबित मुझे धोखे से गुनहग़ार भी कर सकता है

अब यूं ना दिखाओ डर सैलाबों का सरफ़रोशों को
जान हथेली पे हो जिसकी दरिया पार भी कर सकता है


Wednesday, 6 March 2024

मुहब्बत शायरी (4 line)











एक ज़माना लगा मुझे, तेरी मोहब्बत कमाने में
वक़्त नहीं लगता था मुझे वक़्त गवाने में
तेरी सारी तस्वीरें जला डाली मैंने एक-एक कर
बाख़ुदा हाथ कांपने लगे, आख़िरी तस्वीर जलाने में

मेरे मुंह से जो निकले हर बात दुआ हो जाए
सज़ा ऐसी मिले उसे, वो रिहा हो जाए
वो लोग जो समझते हैं, उनका ही दिल धड़कता है
वो भी इश्क में इतना तड़पे, मेरे बराबर में खड़ा हो जाए

यह जो इश्क है मेरा बदनाम नहीं होना चाहिए
मुहब्बत पे मेरी कोई इल्ज़ाम नहीं होना चाहिए
दर्द-ए-दिल की दवा करो मुझे ऐतराज नहीं
पर तबीयत में मेरी आराम नहीं होना चाहिए

छुपाकर ज़माने से राज़ तेरा, दिल में दफ़न कर लूं
अपनी मैय्यत पे ओढ़ लूं, तुझको कफ़न कर लूं
ये जो ग़म तेरा, मिला मुझे, सबसे हसीन है
बता कैसे किसी ग़ैर को, मैं इसमें शारीक़ कर लूं

इस आलम में तेरा मुझे छू जाना जरूरी है
खुशबू बनके रूह में उतर जाना जरूरी है
मेरे सफ़र में उठ रहे हैं गर्दिशों के गुबार
तेरे दामन का मेरे सर पे बिखर जाना जरूरी है

तुम्हें ऊपर से जो बताया गया है सच नहीं है
ख़्याल दिल में जो उगाया गया है सच नहीं है
तुम मुझे देखते फिरते हो दुनिया की नज़र से
मेरी आंखों में आकर पढ़ लो सच नहीं है

तेरी जुल्फ़े इस कलंदर को ज़ंजीर क्या करेगी
हौसला ग़र फ़ौलादी हो तो शमशीर क्या करेगी
मैं अग़र गिर के संभल जाऊं तेरी आंखों से
फिर तू ही बता मेरे लिए नई तरकीब क्या करेगी

वो शख़्स इश्क़ की गली से गुजरा बड़ा मुतमइन
अब कैसे कटेंगे उसके लम्हात तेरे-बिन
एक कबूतर को न जाने कौन-सा रोग़ लग गया
कराहता फिरता है, सुबह-शाम-रात-दिन

पहले उसने मुझसे बिछड़ने के बहाने ढूंढे
फिर फिर-मिलने के कई ज़माने ढूंढ़े
बेकरार मैं भी था, बहुत वो भी थी मग़र
दुनिया दीवार बन गई जब रिश्ते हमने पुराने ढूंढे


Saturday, 2 March 2024

गर्मी पर शायरी

के मौसम गर्मी का बडा ही बे-दर्दी होता है
ज़ालिम रज़ाई भी कतराती है नज़दीक आने में

Friday, 1 March 2024

तूफ़नों में दरिया में नाव चलानी पड़ती है
















कहां आसां होता है सफ़र, इक तरफा मुहब्बत का
तूफ़नों में दरिया में नाव चलानी पड़ती है

यूं ही नहीं बनता ख़ुदा, कोई किसी का मुहब्बत में
बदले वफ़ा के उनसे वफ़ा निभानी पड़ती है

किसी के दिल में उतरने का यही तो पहला क़दम है
नज़रे दुनिया से बचाकर उससे नज़र मिलानी पड़ती है

मुहब्बत की हिफ़जत करनी पड़ती है बड़ी फ़िक्री से
छुपकर ज़माने से यह रस्म निभानी पड़ती है

यूं ही नहीं आसानी से मिलता है कोई चाहने वाला
किसी के दिल में बसने की कीमत चुकानी पड़ती है

कईं बार वो छोड़ जाने को कहता है बीच राह में
दर्द-ए-जिग़र से उसे आवाज़ लगानी पड़ती है

भुला चुका हूं वैसे तो उसे दुनिया की नज़र में
महफ़ूज़ हवा से रखकर यह समां जलानी पड़ती है

के इश्क का अंदाज़ है क्या, किसी दिलदार से पूछो
जलाकर खुद को जिंदगी उनकी रोशन बनानी पड़ती है


Tuesday, 27 February 2024

आशिक का इंटरव्यू (not completed)

 (प्रत्यक्ष साक्षात्कार) 

प्रश्न : पहले तो आप पाठकों को अपना नाम बताइए
उत्तर : "जी मेरा नाम आशिक है"

प्रश्न : महिलाओं के बारे में आपके क्या विचार हैं
उत्तर : मैं महिलाओं की इज्जत बहुत करता हूं

प्रश्न : महिलाओं से आप किस तरह का संबंध रखते हैं
उत्तर : महिलाओं से मेरा एक ही संबंध है और वो है यौन-संबंध। 

प्रश्न : क्या आप फ्लाइंग सिख को जानते हैं
उत्तर : जी नहीं, फ्लाइंग किस तो जानता हूं

प्रश्न : कल रोज़-डे है। कैसी लड़की को रोज़ देना पसंद करेंगे? 
उत्तर : उसे, जो मुझे रोज़ देगी


Aap mujhe kya bolna chahte ho 
O lv u

Nanga parvat
123... Sex 7

Mujhe strike Sare part dekhne hai

Friday, 16 February 2024

Diwan E Satyam (Sher)


आज न जाने क्या गरज निकल आई
धरती की तरफ आसमान पिंघलने लगा

के नशा तेरे प्यार के पागलपन का ही था
एक सर-बुलंद, परस्तिश में, सरफरोश बन गया.

हाथ में शराब है, आगोश में हो तुम
अब फैसला तुम ही करो मैं कौन सी को छोड़ दूं

हरेक रंग के फूल से इश्क़ है मुझे
मैंने मुहब्बत के रास्ते में कभी रंग को ना आने दिया

मेरी दुआ है के मुहब्बत सबकी सलामत होनी चाहिए
पर सबका भला चाहने वाले को भी किसी की दुआ लगनी चाहिए

इन दिनों ही हम कुछ जुदा-जुदा से रहने लगे
एक जमाने में हमने फूलों की बहोत इज्जत की 

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Tuesday, 23 January 2024

सर्दी पर शायरी | जाडे पे शेर शायरी



यूं तो जायज़ है मेरे जिस्म की कंपकंपाहट ’सत्यं’
एक तो सर्दी बहुत और सामने वो भी खड़ी है

इस बार की सर्दी हिज्र में कुछ ऐसी कट रही है
मैं यहां तप रहा, जुदा वो वहां तप रही है

अबकी बार मौसम में क्या तब्दीली आई है
बाहर सर्दी कड़ाके की अन्दर गरमी छाई है

यह आलम शहनाई का होता तो अच्छा होता
हिसाब जज़्बातों की भरपाई का होता तो अच्छा होता
कमबख्त कंबल की आग भी अब बुझने लगी
इस सर्दी इंतजाम रजाई का होता तो अच्छा होता

कड़ी सर्दी, तेरी फ़िक्र और मेरे दिल का टूटना
हर मौसम मेरे खिलाफ़ है ख़ुदा खैर करे

इस उम्मीद में के अगले बरस बना लेगा रजाई अपनी
एक शख़्श सर्दी से लड़ा मग़र महंगाई से मर गया।



Wednesday, 10 January 2024

मुस्कुराहट पे मेरी पहरा बैठा दिया











बैठा हुआ था सुकूं से एक साए तले मैं 
किसी ने जला दिया घर मेरा, सहरा बना दिया

कभी जो उस तरफ देखूं एक जन्नत नज़र आती थी
किसी ने मुस्कुराहट पे मेरी, पहरा बैठा दिया

अर्श की बुलंदियों पे था एक तेज़-परवाज़ कभी
एक सैययाद की निग़ाहो ने, पिंजरे में ला दिया

पीठ पीछे वो मेरी ख़ामियां गिनाता है
मोहब्बत में जिसके सामने, सिर अपना झुका दिया

उसकी एक नज़र से, मेरी तबीयत में बहार रहती थी
फैर ली आंखें उधर, इधर वीराना बना दिया

हम घबराकर ख़्वाब से आधी रात में जगते हैं
एक सगंदिल ने, जां पे मेरी सदमा लगा दिया

ख़्वाब अच्छे देखने का तो मुझको भी हक़ है
फिर क्यों मेरे जज़्बात को, उसने दिल में दबा दिया

सबको लगा के मुझपे बुरे साये का असर है
पागल थे उसके प्यार में हम, था ख़ुद को भुला दिया

सोचा ना था इस मोड़ से भी गुजरेंगे हम 'सत्यं'
हंसते हुए एक इंसान को मुर्दा बना दिया

कभी नाम भी ना आता था मेरे लब पे मोहब्बत का
वो ख़ुद साहिल पे खड़ा रहा, पर मुझको डूबा दिया