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Thursday, 29 December 2022

चार लाइन वाली शायरी






ए ख़ुदा ये हसरत मेरी साकार तू कर दे
उनके दिल में मेरी तड़प का एहसास तू कर दे
जल उठे उनका दिल भी याद में मेरी
इस कदर कोई करामात तू कर दे

ए इलाही मुझपे इतना तो करम कर
ना दे सज़ा बेजुर्म बेबस पे रहम कर
फक़त प्यार में डूबा हूं है कोई गुनाह नहीं
है नाम तेरा ही दूजा इतनी तो शरम कर

एक रोज़ मेरी ज़िंदगी में वो भी शरीक थी
वो चाहत बनके मेरे दिल के करीब थी
मैं समझा था मोहब्बत में मिलेंगे हसीन पल
नज़दीक से देखा तो जुदाई नसीब थी

मैं ज़िंदगी में थक के चूर हो गया हूं
हालात के हाथों मजबूर हो गया हूं
इक ख्वाहिश थी तेरे नज़दीक आने की
पर किस्मत से बहुत दूर हो गया हूं

थामा है मेरा हाथ तो छोड़ ना देना
रास्ता दिखा के प्यार का मुंह मोड़ना लेना
तुम्हें देखता हूं मैं जिसमें सुबह-शाम
मेरे विश्वास के आईने को तोड़ ना देना

क्या पाते हो मुझको सताकर
क्या मिलता है तुम्हें यूं दूर जाकर
एहसास होगा दिल में लग जाएगी जिस दिन
कैसा लगता है किसी के दिल को दुखाकर

वो मेरे वज़ूद को बनाता जाता है
मुझमें उम्मीद जगाता जाता है
काश वो उकेर दे अपना नसीब भी मेरे हाथ पे
मेरा दिल यहीं सपना सजाता जाता है

ना उसने ही जुबां से इनकार से किया
ना मैंने ही जुबां से इकरार किया
ना वो मेरे इरादे जान सके
ना मैं उनके इरादे जान सका

ऐतबार ना रहा, अब तो सभी दगा देते हैं
आज यहां, दिल कल गैरों से लगा लेते हैं
प्यार की ऊंचाई पे ले जाकर बेवफा
धोखे की गहराई में गिरा देते हैं

कईं राज़ मैनें सीने में उतार रखे हैं
बहते आंसू आंखों में संभाल रखे हैं
यूं ना आज़माइश करो मेरे सब्र की
मैंने कईं चांद जमीं पे उतार रखे है

मैं सुनाऊंगा दास्ताने-इश्क कोई सवाल तो दे
अश्क छिपा सकूं महफ़िल में रुमाल तो दे
इतना भी नहीं आसां यह राज़ बताना
मेरे हाथों में छलकता एक जाम तो दे।

वो रहे खुदा सलामत, एहसान इतना कर दे
दूर से ही सही दीदार का इंतज़ाम कर दे
तू डाल दे ज़माने की खुशियां उनके दामन में
और सारे रंजो-ग़म उनके, एक मेरे नाम कर दे

इस प्यास में प्यार की सौगात मिल जाए
तपती ज़मीं को अल्हड़ कोई बरसात मिल जाए
हाथ मिलाना तो जैसे ग़ैर-ज़रूरी है
जरूरी ये है बहुत के ख़यालात मिल जाए

मैंने ठहरे आंसू को आंख से बहने ना दिया
छिपाकर रखा बहुत दर-ब-दर होने ना दिया
ये राज़ ना ज़ाहिर हो के बेकद्र दुनिया पे
ना मैंने कहा ना उसे ही कहने दिया

नामुमकिन सपने झूठा उनका प्यार दिया
धोखा खाया जो उन पर ऐतबार किया
तू जानता था ए खुदा वो मेरी किस्मत में नहीं
फिर क्यों मजाक ऐसा मेरे साथ किया

हवा को रुख मौसम को रंग बदलते देखा
चूर दिल को शोले सा जलता देखा
गिर जाता है जो इक बार इश्क की राह में
नहीं फिर उसको 'सत्यं' सम्भलते देखा

हर तरफ फिज़ा में तेरा नाम लिखा है
मेरे लिए मोहब्बत का पैगाम लिखा है
मिटा ना देना ये गुज़ारिश है ए दोस्त
मैंने दिल के हर कोने में तेरा नाम लिखा है

हर तमन्ना मेरी मचलती है
बातें साया बनकर चलती है
सुलगता है दिल मेरा घनी ज़ोर से
जब तेरी यादों की हवा चलती है

मेरी बदनसीबी ने ख़ाक में मिला रखा था मुझें
वो ख़िज़ां के मौसम की आंच दिल में दफ़न है
फिर भी छूते रहें क़दम मेरे क़ामयाबी की मंज़िल
ये मेरी मां की दुआओं का असर है।

गर जेब में तेरी पैसा है
तो दुनिया पूछ लेती है तू कैसा है?
चंद लोग है जो रिश्तों की अहमियत समझते हैं,
वरना हर शख्स यहां एक जैसा है।।

तू बेरुखी ना करना, चाहत ना दे सके ग़र
दूर से ही तुझे प्यार मैं कर लूंगा
ग़र लिखा है खुदा ने इंतज़ार मेरी किस्मत में
तो उम्र भर तेरा इंतज़ार मैं कर लूंगा

हर पल मुझको तेरी याद सताती है
कोई शदा जिगर के पार जाती है
जितना भुलाना चाहू तुझको ऐ सनम
तेरी याद और हद से बढ़ जाती है

फ़ुज़ूल ही झुकाए कोई नज़रों को अपनी
अनोखा अंदाज़ झलक ही जाता है
कितना ही संभाले कोई जवानी का जाम
मोहब्बत का कतरा छलक ही जाता है
 
तेरी सूरत हमने पलकों में छुपा रखी है
बीती हर बात दिल में दबा रखी है
तू नहीं शामिल मेरी ज़िंदगी में तो क्या
तेरी याद आज भी सीने से लगा रखी है

कईं बहारें आई आकर चली गई
मेरे दिल के आंगन में कोई गुल नहीं खिला
हाले-दिल सुना सकता मैं जिसके सामने
मुझको पहले आप-सा बस दोस्त नहीं मिला

गर जेब में तेरी पैसा है
तो दुनिया पूछ लेती है, तू कैसा है?
चंद लोग है जो रिश्तों की अहमियत समझते हैं,
वरना हर शख्स यहाँ एक जैसा है

दुश्मन को भी नज़र ए इनायत देते हैं हम
गुस्ताख़ी पे उसकी पर्दा गिरा देते हैं हम
शर्मिंदा ही रहेगा जब भी सामना होगा
इज्ज़त उसकी उसी की नज़रों में गिरा देते हैं हम




Thursday, 22 December 2022

किस्मत किसी शख़्स को आजमाती नहीं
















हर आदमी को वहशी दरिंदा ना समझो
हर औरत भी औलाद को कोठे पे बैठाती नहीं

दुनिया उजाड़ने में हवा का किरदार बड़ा होता है
चिराग की लौ ही अकेले घर को जलाती नहीं

इन दिनों मेरा ही काम सबसे मुश्किल लगा मुझे
मैं बेरोज़गार हूं रोज़गार पे दुनिया बुलाती नहीं

हर शख़्स इस दुनिया में किस्मत को आजमाता है
कभी किस्मत किसी शख़्स को आजमाती नहीं

यूं ही न जमाने ने उसे खुदा का खिताब दिया
मां खून पिलाती है अपना भूखा सुलाती नहीं

अपने गुनाहों की तौबा ख़ुदा से राब्ते में कर
मैदान ए हश्र में फ़रियाद काम आती नहीं

कितने ही सावन बीत गए प्यास अधूरी लगती है
इश्क की आग है एक पल में तो बुझ पाती नहीं

यूं तो सभी ग़ज़ल मैंने उसकी तारीफ़ में लिखी
पर कोई भी मुकम्मल ता'अरुफ कराती नहीं




Sunday, 18 December 2022

दिल पे बोझ बना रहता है




लो खुद ही देख लो मेरे मिट्टी से रंगे हाथ
मुफलिसी में कब हाथ साफ़ बना रहता है

देखना ये है के तहज़ीब से उमर कौन बसर करें
जवानी आने का जवानी जाने का दौर तो लगा रहता है

सियासत में कौन हमेशा हुक़्मरां रहा
यहां आना जाना फ़न्ने खां का लगा रहता है

दौरे इश्क में गिरकर ही संभलना पड़ता है
कौन इस मैदान में हर रोज़ खड़ा रहता है

बेगुनाह परिंदों को यूं ही ना गिरफ़्तार करो
क़ैद की एक रात का सदमा उमर भर लगा रहता है

बेफ़िक्री से ना रिश्तों को लहूलुहान किया करो
जख़्म ऊपर से भर भी जाए अंदर से हरा रहता है

कोई कितना भी उस क़ौम को छोटा समझे भूल करे
जो फितरत से बड़ा हो बड़ा रहता है

कभी जो फुर्सत मिले वालिद के दामन में बैठा कर
वक्त गुजर जाए तो दिल पे बोझ बना रहता है




Thursday, 1 December 2022

दौर ए बेरुख़ी




















मैं गुनाहगार नहीं और तुमको एतबार नहीं
फिर सोचना कैसा तोहमत जो चाहे लगा दो

मैं जानता हूं के इल्ज़ाम यूं ही सिर नहीं रखते
कोई सुबूत नहीं मेरे ख़िलाफ़ तो झूठा ही बना दो

ग़र बदनाम ही है करना मुझ अमन-परस्त को
शराब हराम है तुम मुझे शराबी बता दो

इश्क मेरा मज़हब इश्क ही मेरा इमां
इश्क करना है जुर्म तो जो चाहे सज़ा दो

तू है जुदा मुझसे मैं भी जुदा तुझसे
बरसों से थे एक जां अब ऐसा ना सिला दो

इंसान को इंसान की अब ज़ियादा जरूरत है
तेरे मेरे बीच की इस दूरी को मिटा दो

यूं तो लड़ाना आपस में सियासत का काम है
मज़हब नहीं सिखाता यह सबको बता दो

यही तो कमाल है हिंदुस्तां की मिट्टी का
जो भी झुक के चूम ले उसे सीने से लगा लो

Sunday, 13 November 2022

दीवान ए सत्यं | Diwan E Satyam | Anil Satyam



मेरे दुश्मन ही नहीं एक, मुझको ग़म देते हैं
अब तो इनमें सितमग़र तेरा नाम भी आने लगा

कभी सिगरेट कभी शराब हर रोज़ नए तज़ुर्बें करता हूं
तेरे ग़म में सितमगर अपने रुतबे से भी गिर गया मैं

मैं भी ख़्वाहिशों के शहर में, तू भी ख़्वाहिशों के शहर में
घर अपना बनाने चले हैं, इस तपती हुई दोपहर में

कईं राज़ मैनें सीने में उतार रखे हैं
बहते आंसू आंखों में संभाल रखे हैं
यूं ना आज़माइश करो मेरे सब्र की
मैंने कईं चांद जमीं पे उतार रखे है

मैं सुनाऊंगा दास्ताने-इश्क, कोई सवाल तो दे
अश्क छिपा सकूं महफ़िल में, रुमाल तो दे
इतना भी नहीं आसां यह राज़ बताना
मेरे हाथों में छलकता एक जाम तो दे।

इस प्यास में प्यार की सौगात मिल जाए
तपती ज़मीं को अल्हड़ कोई बरसात मिल जाए
हाथ मिलाना तो जैसे ग़ैर-ज़रूरी है
जरूरी ये है बहुत के ख़यालात मिल जाए

Wednesday, 9 November 2022

मैं, मित्र और महबूब




यह कहानी मेरी किशोरावस्था की है, जिस समय मेरी उम्र 16 वर्ष थी। उन दिनों मैं पढ़ाई करने के साथ-साथ एक फैक्ट्री में अपने एक मित्र जिसका नाम विपिन था के साथ काम करने भी जाया करता था। नौकरी से जो पैसा मिलता था उससे मैं अपनी पढ़ाई व रोजमर्रा का पॉकेट खर्च निकालता था।

मैं और मेरा मित्र फ़ैक्ट्री तक 2-3 किलोमीटर का रास्ता पैदल चल कर ही जाया करते थे। दिन में जैसे ही दोपहर 1ः00 बजे लंच टाईम होता था तो हम दोनों जल्दी से खाना खाते और उसके बाद बाहर टहलने निकल जाते, जो कि हमारी रोज़ की आदत में शामिल था। वैसे तो हमें उस कॉलोनी की ज्यादा जानकारी नहीं थी इसलिए हम अधिक दूर तक नहीं जाया करते थे। मेरे मित्र को तंबाकू खाने की आदत बनती जा रही थी इसलिए वह कॉलोनी की पास की एक दुकान पर भी जाया करता था। हम दोनों दोपहर लगभग 1ः30 बजे रोज़ एक गली से गुजरते और वापिस आकर फिर से काम पर लग जाते थे। लगभग डेढ़ महीना तक ऐसे ही चलता रहा।

एक दिन की बात है हम उस गली से गुज़र रहे थे कि तभी विपिन ने अचानक तबाकू की पुड़िया निकाली और उसे तुरंत दांतो से काटकर मुंह में डालते हुए आहिस्ता-आहिस्ता मुस्कुराने लगा। मैंने जैसे ही अपनी गर्दन दूसरी तरफ घुमाई तभी अचानक मेरी नज़र वहां मकान की बालकनी पर खड़ी एक लड़की पर पड़ी, जो कि लगातार हमारी तरफ देखकर मुस्कुरा रही थी। हम आगे बढ़ते रहे और फिर फैक्ट्री लौट आए और काम पर लग गए।

एक दिन जब हम उस गली से गुज़र रहे थे तो वही बात मैंने तब भी नोटिस की। वह लड़की लगातार हमारी तरह देखती ही जा रही थी। बार-बार एक ही तरह की चीजें होना, यह बात मुझे हज़म नहीं हुई और मैंने विपिन से पूछ ही लिया कि वह कौन है? इस पर विपिन ने कहा कि वह लड़की उसे देखकर रोज़ मुस्कुराती है और वह भी उसे ही देखने के लिए इधर से गुजरता है। इतना सुनते ही भूतकाल में हुई सारी घटनाओं की स्मृतियां मेरे मस्तिष्क में तैरने लगी। इस पर मैंने विपिन को याद दिलाते हुए कहा- “अच्छा बच्चू तो तुम मुझे अपने साथ इसको देखने के लिए ही लेकर आते हो?“ तभी इस पर विपिन ने हंसते हुए कहा हां-हां तुम्हारा अंदाज़ा एकदम सही है। फिर उसने विस्तार से मुझे सारी बातें बता डाली। उसके बाद जब कभी भी हम उस गली से गुजरते तो वह ठीक समय पर बालकनी में खड़ी होती और हमें देखकर मुस्कुराती थी। मैं उससे कभी नज़रें नहीं मिलाता था। विपिन को कोई बाधा ना हो इसलिए रास्ते पर दूसरी तरफ चलता था। लगभग 3 महीने गुज़र जाने के बाद मैंने उस फै़क्ट्री से काम छोड़ दिया पर विपिन अब भी नियमित रूप से वहां जा रहा था।

लगभग 12 दिन गुजरने के बाद विपिन मेरे पास आया तो मैंने देखा कि उसका मुंह लटका हुआ था। मैंने पूछा- “क्यों भाई कैसे उदास हो? सब ठीक तो है। क्या उससे बात आगे बढ़ी?“ तो इस पर विपिन ने मुझसे नज़रें झुकाकर घबराते हुए कहा- "भाई सत्यं मैं और ज्यादा दिन तक इस सच्चाई को नहीं छुपा सकता" और तभी अपनी जेब से एक काग़ज का टुकड़ा निकाला और मेरे हाथ पर रख दिया। मैंने उसे खोलकर देखा तो उस पर एक टेलीफोन नंबर और नीचे एक लाईन में लिखा था कि “मैं आपको याद करती हूं।“ मैंने यह सब पढ़ने के बाद विपिन से कहा- तो इसमें घबराने की क्या बात है तुम उसे फोन कर लो। तो इस पर विपिन ने मुझसे कहा तुम समझ नहीं रहे हो और सच्चाई बताते हुए कहा कि ‘‘यह काग़ज़ का टुकड़ा उसको 7 दिन पहले दिया गया था, जब वह उस लड़की की गली से गुज़र रहा था, लेकिन स्वार्थ के कारण वह तुम्हें दिखाना नहीं चाहता था।’’ तो इस पर मैंने भी हंसते हुए कह दिया ‘‘कोई बात नहीं अगर तुम अपनी बात मुझसे सांझा नहीं करना चाहते।’’ तभी इस पर विपिन ने गुस्से से कहा कि 7 दिनों से मैं इस काग़ज़ के टुकड़े को तुमसे इसलिए छुपाए फिर रहा हूं क्योंकि यह काग़ज़ का टुकड़ा उसने मुझें तुम्हें देने के लिए दिया था, और अब मैं इस सच्चाई को ज्यादा नहीं छुपा सकता।

विपिन के मुंह से ऐसी बातें सुनकर मानो मेरे पैरों की जम़ीन ही खिसक गई और मैं एकदम स्तब्ध रह गया। विपिन ने मुझे सारी सच्चाई बताई कि- सात दिनों पहले जब वह उस गली से गुज़र रहा था तो उस लड़की ने उसका पीछा किया और रास्ते में उसे रोक कर तुम्हारे बारे में पूछने लगी, और बोली मैं उनका नाम तो नहीं जानती लेकिन कईं दिन हो गए हैं, मैंने उनको देखा नहीं और अब वो यहां क्यों नहीं आ रहे? ‘‘कैसे भी करके एक बार उनको यहां ले आओ। मैं उनसे मिलना चाहती हूं। हो सके तो मुझ पर इतना एहसान कर दो प्लीज़!

यह सब सुनने के बाद मेरे पास कोई शब्द नहीं था। हम दोनों के गले की आवाज़ बैठ गई। थोड़ी देर रुकने के बाद विपिन ने मुझसे हाथ मिलाया और बिना कुछ बोले घर चला गया।

Sunday, 6 November 2022

Quotation । उद्धरण

मनुष्य जिस बात को सहजता से जान लेता है उसे साधारण मान लेता है और जो बात उसकी तार्किक क्षमता से परे होती है उसे चमत्कार मान लेता है।



वेद-पुराणों के अनुसार कोई भी जीवित व्यक्ति स्वर्ग नहीं जा सकता। फिर कुछ जीवित धूर्त बाबा जिन्होंने खुद तो स्वर्ग देखा नहीं परंतु लोगों को रास्ता कैसे दिखा रहे हैं?
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शरीर में जब दवा असर ना करें तो समझ लेना चाहिए कि रोग शारीरिक नहीं मानसिक है ना कि अलौकिक।
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।। डेढ़ मिनट पानी का नियम ।।
पहले 30 सेकंड तक ज़मीन पर बैठे रहे
फिर 30 सेकंड तक पानी पीए
और फिर 30 सेकंड बाद खड़े हो जाएं।
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।। चार धाम यात्रा क्यों कराई जाती है?।।
* इसलिए नहीं कि तुम्हें मोक्ष प्राप्त होगा, बल्कि इसलिए ताकि मनुवादियों का व्यवसाय व व्यवस्था चलते रहें।
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मनुवाद में संख्या 3 व 8 को अशुभ क्यों माना जाता है?
* संख्या ३ :
क्योंकि बौद्धों की ३ पवित्र पुस्तकें त्रिपिटक हैं।
* संख्या ८ :
क्योंकि बौद्धों के ८ मार्ग हैं जिन्हें अष्टांग मार्ग कहते हैं।
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इतनी खुशी सोना मिलने के बाद भी नहीं होती, जितनी की कुछ घंटे सोने के बाद होती है।
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कुछ लोग रामराज लाने की योजना बना रहे हैं पर इसके लिए राम भी तो जिंदा होना चाहिए।
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किसी का भगवान चाहे 5000 वर्ष पुराना हो या 50 वर्ष पुराना, भक्त की आस्था उसे दूसरों से श्रेष्ठ ही मानती है।
यही सबसे बड़ा भ्रम-विश्वास है -
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वहम का इलाज भी संभव है किंतु इसके लिए आपको हकीम के पास नहीं मनोवैज्ञानिक डॉक्टर के पास जाना होगा।
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धोखा झूठ के बल पर खड़ा होता है लेकिन इसे चमत्कार बताकर विद्वानों और ताक़तवरों को भी आसानी से बेवकूफ़ बनाया जा सकता है।
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एक साधारण बैल को नंदी बैल बनने की प्रक्रिया में बहुत सारी यातनाएं, अत्याचार तथा अथक अभ्यास से गुजरना पड़ता है, तब कहीं जाकर एक हिंदू देवता पैदा होता है।
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यह संविधान जिंदा है तो आपको आंदोलन करने की अनुमति भी देता है। एक बार यदि यह बदल गया तो आप वो भी नहीं कर सकोगे।
हो सकता है दूसरे विधान आपको इसकी इजाजत भी ना दें, अब समय सोचने का नहीं, करने का है।
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लोकोक्ति का अर्थ?
"कण कण में है बुद्ध भगवान"- भारत की भूमि को आप कहीं भी खोदो वहां बुद्ध भगवान की मूर्तियां ही निकलेंगी
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कल एक जातिवादी मटकी ने समाज के एक निर्दोष बच्चे की जान ली थी, 
आज समाज के कुछ अंधभक्त उसे सर पे सजाए घूम रहे हैं। तुम्हारी अज्ञानता ही तुम्हारी जान की दुश्मन है
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जो व्यक्ति काल्पनिक दैवीय मूर्तियों व चित्रों से अपना रोज़गार कमाता है या उनका प्रचार-प्रसार करता है वह समाज को अंधविश्वास में धकेलने के लिए बड़ा जिम्मेदार है।
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अंधभक्त उस वफादार कुत्ते की तरह होता है जिसकी वफादारी दूसरों के लिए खतरा होती है उसमें वैचारिक क्षमता नहीं होती और वो केवल अपने मालिक का ही अनुसरण करते हैं, चाहे वह अच्छा हो या बुरा।
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"झाड़ू" हाथ में थामोंगे तो सेवक बन गुलामी ही करोंगे।
देश का राजा बनना है तो "हाथी पर सवार होना होगा"
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घर की सफाई के लिए कोई भी साधारण झाड़ू खरीद लेना, 
लेकिन *"आप" कमल ब्रांड झाड़ू* खरीद कर देश को साफ़ ना करा देना।
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बहुजन समाज के लोग और इनके नेता इतने बचकाने तो नहीं कि यह बात ना जानते हो कि "आम आदमी पार्टी और बीजेपी" एक ही है।
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एक बार एक व्यक्ति ने एक साधु से उपाय पूछते हुए कहा कि-
"मुझे कोई ऐसा मार्ग बताए जिससे मैं समाज को धोखा भी देता रहूं और कोई मुझ पर शक भी ना करें"
साधु ने थोड़ा विचार किया और फिर बोला कि-
"तुम अपने सिर के बाल सफेद कर आम आदमी पार्टी में शामिल हो जाओ।"
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मौत के व्यापारियों ने कोरोना-योद्धा बनकर दलाली की और ना जाने कितने मासूमों और बेगुनाहों को टीकाकरण करा कर मौत के चंगुल में फंसा दिया है।
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कोई भी बहुजन समाज का व्यक्ति संस्कृत विषय का चयन ना करें अगर आप ऐसा करते हैं तो इसे बहुत जल्द पाठ्यक्रम से हटाया जा सकता है और मनुवाद को खुली चेतावनी दी जा सकती है

Tuesday, 9 August 2022

अंबेडकर और मगरमच्छ



यह वास्तविक घटना दिल्ली के आर. के. पुरम गांव की है। गांव में एक व्यक्ति रहता था जो कि बाबा साहब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जी का बहुत बड़ा अनुयाई और भक्त था। वह सुबह सवेरे उठता तो सबसे पहले बाबा साहब की प्रतिमा को नमन करता था। दिन के किसी भी पहर जब भी वह किसी अन्य व्यक्ति से मिलता तो उसे "जय भीम" बोलकर सत्कार किया करता था। उसने बाबा साहब की अनेकों किताबों का अध्ययन कर बहुत बड़े पैमाने पर ज्ञान अर्जित किया था। बाबा साहब के विचार सदैव उसके मस्तिष्क पर छाए रहते थे।

एक रात की बात है जब वह गहन निद्रा में सोया हुआ था तो उसने एक सपना देखा जिसमें उसने ख़ुद को एक तालाब के किनारे पाया। उसने जैसे ही तालाब के अंदर पानी पीने के लिए अपना एक पैर रखा तो वहां पहले से ही घात लगाएं बैठे एक मगरमच्छ ने उसका पैर अपने जबड़े में दबोच लिया और धीरे-धीरे पानी के अंदर खींचने लगा। अब वह बहुत ज्यादा घबरा गया, उसे कुछ नहीं सूझ रहा था। उसने अपना पैर छुड़ाने का बहुत प्रयास किया परंतु असमर्थ रहा। पीड़ा ज्यादा होने के कारण उसके मुंह से एक आवाज़़ निकली "हे! बाबा साहब मुझे बचाओ।"

इतना कहते ही बाबा साहब हाथ में संविधान की किताब लिए वहां प्रकट हुए, और हाथ उठाकर मगरमच्छ को फटकारते हुए कहा- "हटो! दूर हटो, यह मेरा अनुयाई है।" बाबा साहब के ऐसे वचन सुनकर मगरमच्छ घबराकर दूर पानी की गहराई में चला गया। फिर बाबा साहब ने उस व्यक्ति का हाथ पकड़ कर उसे ऊपर उठाया और आधिकारिक रूप से अपने हाथों से पानी पिलाया।

दूसरे ही पल उस व्यक्ति की नींद टूट जाती है और वह स्वयं को अपने बिस्तर पर पाता है। उसी क्षण उसकी नज़र बाबा साहब की प्रतिमा व किताबों पर जाती है जो कि उसके कमरे में रखी हुई थीं। उनको देखकर उसके मुहं से सिर्फ एक ही बात निकलती है "जय भीम"।

Monday, 8 August 2022

भारत और भरत?


कईं मिथक प्रमाणों के आधार पर हमें यह पढ़ाया जाता है कि हमारे देश भारत का नाम राजा सर्वदमन यानी भरत के नाम पर पड़ा। जहां वह पैदा हुए थे वह जगह अब अफगानिस्तान में है। 

व्याकरणिक दृष्टि से देखा जाए तो भरत के नाम पर पड़ने के कारण तो इसका नाम भरतवर्त, भरतपुर, भरत नगरी, भरत विहार आदि होना चाहिए था।

मुझे सचमुच बहुत आश्चर्य है कि कोई अपने नाम को क्यों विकृत होने देगा। "भ+र+त" नाम में वर्ण "भ" के साथ "भ+।" क्यों जोड़ देगा और इसे "भ+।+र+त" क्यों बना देगा। यह बात हर सिरे से अतार्किक लगती है।

कुछ जातिगत लोग और धर्म के ठेकेदार आज भी ऐसे-ऐसे प्रयोग करते रहते हैं। मैं आपको एक उदाहरण के माध्यम से समझाता हूं- "हमारा देश भारत एक पुलिंग शब्द है" लेकिन फिर भी कुछ लोग इसे भारत माता क्यों कहते रहते हैं जो कि भाषाई व व्याकरणिक दृष्टि से त्रुटिपूर्ण है।

यदि बात वास्तविकता की करें तो भारत देश का नाम यहां आदिकाल से रहने वाली एक कबीलाई अनुसूचित जनजाति के नाम पर पड़ा है। "इस कबीलाई जाति का नाम ही भारत था। कुछ जालसाज लोगों ने भारत की संस्कृति को समाप्त के लिए इतिहास को अपने ही ढंग से लिख डाला है।