मैं, मित्र और महबूब




यह कहानी मेरी किशोरावस्था की है, जिस समय मेरी उम्र 16 वर्ष थी। उन दिनों मैं पढ़ाई करने के साथ-साथ एक फैक्ट्री में अपने एक मित्र जिसका नाम विपिन था के साथ काम करने भी जाया करता था। नौकरी से जो पैसा मिलता था उससे मैं अपनी पढ़ाई व रोजमर्रा का पॉकेट खर्च निकालता था।

मैं और मेरा मित्र फ़ैक्ट्री तक 2-3 किलोमीटर का रास्ता पैदल चल कर ही जाया करते थे। दिन में जैसे ही दोपहर 1ः00 बजे लंच टाईम होता था तो हम दोनों जल्दी से खाना खाते और उसके बाद बाहर टहलने निकल जाते, जो कि हमारी रोज़ की आदत में शामिल था। वैसे तो हमें उस कॉलोनी की ज्यादा जानकारी नहीं थी इसलिए हम अधिक दूर तक नहीं जाया करते थे। मेरे मित्र को तंबाकू खाने की आदत बनती जा रही थी इसलिए वह कॉलोनी की पास की एक दुकान पर भी जाया करता था। हम दोनों दोपहर लगभग 1ः30 बजे रोज़ एक गली से गुजरते और वापिस आकर फिर से काम पर लग जाते थे। लगभग डेढ़ महीना तक ऐसे ही चलता रहा।

एक दिन की बात है हम उस गली से गुज़र रहे थे कि तभी विपिन ने अचानक तबाकू की पुड़िया निकाली और उसे तुरंत दांतो से काटकर मुंह में डालते हुए आहिस्ता-आहिस्ता मुस्कुराने लगा। मैंने जैसे ही अपनी गर्दन दूसरी तरफ घुमाई तभी अचानक मेरी नज़र वहां मकान की बालकनी पर खड़ी एक लड़की पर पड़ी, जो कि लगातार हमारी तरफ देखकर मुस्कुरा रही थी। हम आगे बढ़ते रहे और फिर फैक्ट्री लौट आए और काम पर लग गए।

एक दिन जब हम उस गली से गुज़र रहे थे तो वही बात मैंने तब भी नोटिस की। वह लड़की लगातार हमारी तरह देखती ही जा रही थी। बार-बार एक ही तरह की चीजें होना, यह बात मुझे हज़म नहीं हुई और मैंने विपिन से पूछ ही लिया कि वह कौन है? इस पर विपिन ने कहा कि वह लड़की उसे देखकर रोज़ मुस्कुराती है और वह भी उसे ही देखने के लिए इधर से गुजरता है। इतना सुनते ही भूतकाल में हुई सारी घटनाओं की स्मृतियां मेरे मस्तिष्क में तैरने लगी। इस पर मैंने विपिन को याद दिलाते हुए कहा- “अच्छा बच्चू तो तुम मुझे अपने साथ इसको देखने के लिए ही लेकर आते हो?“ तभी इस पर विपिन ने हंसते हुए कहा हां-हां तुम्हारा अंदाज़ा एकदम सही है। फिर उसने विस्तार से मुझे सारी बातें बता डाली। उसके बाद जब कभी भी हम उस गली से गुजरते तो वह ठीक समय पर बालकनी में खड़ी होती और हमें देखकर मुस्कुराती थी। मैं उससे कभी नज़रें नहीं मिलाता था। विपिन को कोई बाधा ना हो इसलिए रास्ते पर दूसरी तरफ चलता था। लगभग 3 महीने गुज़र जाने के बाद मैंने उस फै़क्ट्री से काम छोड़ दिया पर विपिन अब भी नियमित रूप से वहां जा रहा था।

लगभग 12 दिन गुजरने के बाद विपिन मेरे पास आया तो मैंने देखा कि उसका मुंह लटका हुआ था। मैंने पूछा- “क्यों भाई कैसे उदास हो? सब ठीक तो है। क्या उससे बात आगे बढ़ी?“ तो इस पर विपिन ने मुझसे नज़रें झुकाकर घबराते हुए कहा- "भाई सत्यं मैं और ज्यादा दिन तक इस सच्चाई को नहीं छुपा सकता" और तभी अपनी जेब से एक काग़ज का टुकड़ा निकाला और मेरे हाथ पर रख दिया। मैंने उसे खोलकर देखा तो उस पर एक टेलीफोन नंबर और नीचे एक लाईन में लिखा था कि “मैं आपको याद करती हूं।“ मैंने यह सब पढ़ने के बाद विपिन से कहा- तो इसमें घबराने की क्या बात है तुम उसे फोन कर लो। तो इस पर विपिन ने मुझसे कहा तुम समझ नहीं रहे हो और सच्चाई बताते हुए कहा कि ‘‘यह काग़ज़ का टुकड़ा उसको 7 दिन पहले दिया गया था, जब वह उस लड़की की गली से गुज़र रहा था, लेकिन स्वार्थ के कारण वह तुम्हें दिखाना नहीं चाहता था।’’ तो इस पर मैंने भी हंसते हुए कह दिया ‘‘कोई बात नहीं अगर तुम अपनी बात मुझसे सांझा नहीं करना चाहते।’’ तभी इस पर विपिन ने गुस्से से कहा कि 7 दिनों से मैं इस काग़ज़ के टुकड़े को तुमसे इसलिए छुपाए फिर रहा हूं क्योंकि यह काग़ज़ का टुकड़ा उसने मुझें तुम्हें देने के लिए दिया था, और अब मैं इस सच्चाई को ज्यादा नहीं छुपा सकता।

विपिन के मुंह से ऐसी बातें सुनकर मानो मेरे पैरों की जम़ीन ही खिसक गई और मैं एकदम स्तब्ध रह गया। विपिन ने मुझे सारी सच्चाई बताई कि- सात दिनों पहले जब वह उस गली से गुज़र रहा था तो उस लड़की ने उसका पीछा किया और रास्ते में उसे रोक कर तुम्हारे बारे में पूछने लगी, और बोली मैं उनका नाम तो नहीं जानती लेकिन कईं दिन हो गए हैं, मैंने उनको देखा नहीं और अब वो यहां क्यों नहीं आ रहे? ‘‘कैसे भी करके एक बार उनको यहां ले आओ। मैं उनसे मिलना चाहती हूं। हो सके तो मुझ पर इतना एहसान कर दो प्लीज़!

यह सब सुनने के बाद मेरे पास कोई शब्द नहीं था। हम दोनों के गले की आवाज़ बैठ गई। थोड़ी देर रुकने के बाद विपिन ने मुझसे हाथ मिलाया और बिना कुछ बोले घर चला गया।

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