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Sunday, 13 November 2022

दीवान ए सत्यं | Diwan E Satyam | Anil Satyam



मेरे दुश्मन ही नहीं एक, मुझको ग़म देते हैं
अब तो इनमें सितमग़र तेरा नाम भी आने लगा

कभी सिगरेट कभी शराब हर रोज़ नए तज़ुर्बें करता हूं
तेरे ग़म में सितमगर अपने रुतबे से भी गिर गया मैं

मैं भी ख़्वाहिशों के शहर में, तू भी ख़्वाहिशों के शहर में
घर अपना बनाने चले हैं, इस तपती हुई दोपहर में

कईं राज़ मैनें सीने में उतार रखे हैं
बहते आंसू आंखों में संभाल रखे हैं
यूं ना आज़माइश करो मेरे सब्र की
मैंने कईं चांद जमीं पे उतार रखे है

मैं सुनाऊंगा दास्ताने-इश्क, कोई सवाल तो दे
अश्क छिपा सकूं महफ़िल में, रुमाल तो दे
इतना भी नहीं आसां यह राज़ बताना
मेरे हाथों में छलकता एक जाम तो दे।

इस प्यास में प्यार की सौगात मिल जाए
तपती ज़मीं को अल्हड़ कोई बरसात मिल जाए
हाथ मिलाना तो जैसे ग़ैर-ज़रूरी है
जरूरी ये है बहुत के ख़यालात मिल जाए

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