दीवान ए सत्यं | Diwan E Satyam | Anil Satyam
अब तो इनमें सितमग़र तेरा नाम भी आने लगा
कभी सिगरेट कभी शराब हर रोज़ नए तज़ुर्बें करता हूं
तेरे ग़म में सितमगर अपने रुतबे से भी गिर गया मैं
मैं भी ख़्वाहिशों के शहर में, तू भी ख़्वाहिशों के शहर में
घर अपना बनाने चले हैं, इस तपती हुई दोपहर में
कईं राज़ मैनें सीने में उतार रखे हैं
बहते आंसू आंखों में संभाल रखे हैं
यूं ना आज़माइश करो मेरे सब्र की
मैंने कईं चांद जमीं पे उतार रखे है
मैं सुनाऊंगा दास्ताने-इश्क, कोई सवाल तो दे
अश्क छिपा सकूं महफ़िल में, रुमाल तो दे
इतना भी नहीं आसां यह राज़ बताना
मेरे हाथों में छलकता एक जाम तो दे।
इस प्यास में प्यार की सौगात मिल जाए
तपती ज़मीं को अल्हड़ कोई बरसात मिल जाए
हाथ मिलाना तो जैसे ग़ैर-ज़रूरी है
जरूरी ये है बहोत के ख़यालात मिल जाए
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