ख़ुदा | Khuda | Shayari



क्या खूब बख़्शी है, ए ख़ुदा ख़्यालों की नेमत तूने
हर कोई जिसे चाहे मोहब्बत कर सकता है

यह पैग़ाम आया ख़ुदा का मुहब्बत कर ले 'सत्यं'
अब क्या कुसूर मेरा जो दिल उन पे आ गया

पूछता जो ख़ुदा, तेरी रिज़ा क्या है
तो सबसे पहले तेरा नाम मैं लेता

तू दे सज़ा उनको या ख़ुदा ऐसी
के प्यार उनका भी किसी बेखुद पर आए

चल ले चल हाथ पकड़ कर, मुझको दर ख़ुदा के
क़ाफ़िर था मैं, जो बेखुदी में सजदा उसे किया

एक रोज़ उसे मांगेंगे, दुआ कर ख़ुदा से
फ़िलहाल लुत्फ़ उठा रहा हूं, इंतज़ार का

कोई ऐसी करामात ख़ुदा, उसे भूल जाने की कर
के याद भी ना रहू और इल्ज़ाम भी ना सिर हो

कुछ इस कदर खोया हूं, तेरी उल्फ़त में सितमग़र
कोई कर रहा तहे-दिल से ख़ुदा की इबादत जैसे

तुम सजदा करो उसे लिहाज़ ना हो ग़र ये मुमकिन है
फिर कैसे किसी बुत को तुम ख़ुदा बनाते हो?

ख़ुदा की रहमत है रुसवाई मेरे मुक़द्दर में
वरना मासूम कोई सितमगर नहीं होता

जो वक़्त हमने तेरी चाहत में गंवाया
इबादत में लगाते तो ख़ुदा मिल जाता

कह दे ख़ुदा उनसे चले आए मुझसे मिलने
आंखे झपकती है मेरी कहीं देर ना हो

हर कोई रखता है ख़्वाहिश इक बार उनको देखकर
ख़ुदा करे बार-बार अब उनकी दीद हो

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वीडियो देखने के लिए नीचे लिंक पर क्लिक करें :

https://www.youtube.com/watch?v=m-n7bmib-fo&t=4s

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