हम बेखुदी में जिसको सज़दा रहे करते
कभी ग़ौर से ना देखा पत्थर का बुत है वो
कईं मोड़ से गुज़रे राहे उल्फ़त में 'सत्यं'
सोचा था मैंने यूं, आसानियां होंगी
ना करते हम इतनी मोहब्बत उनसे
मालूम होता ग़र वो मग़रूर हो जाएंगे
उन्हें मालूम हो गया हमें सुकून मिलता है
तो ज़ालिम हंसी भी अपनी दबाने लगे
शायद आज मेरी दुआ रंग ला रही है
मैंने तड़पते देखा है उसे किसी के प्यार में
मैंने कसम उठायी थी ना ग़ुनाह करने की
मालूम ना था लोग मोहब्बत को ज़ुर्म समझते हैं
क्या खूब बख़्शी है ऐ ख़ुदा, ख़्यालों की नेमत तूने
हर कोई जिसे चाहे, मोहब्बत कर सकता है
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https://youtu.be/pxV33VKu65Q
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