कुछ दिलकश शेर | Kuchh Dilkash Sher




मालूम होता ग़र ये खेल लकीरों का
तो ज़ख्मी कर हाथों को तेरी तक़दीर लिख लेता

पैदाइशी शौक है ख़तरों से खेलना
होता रहे सामना सो मोहब्बत कर ली

हर रोज़ गुजरे हम मुश्किलों के दौर से
इन ख्वाहिशों ने शौक अपना मोहब्बत बना दिया

कुछ देर अपने दामन की छांव में ले ले
मैं ज़िंदगी के सहरा में भटका हूं बहुत दूर

ये ख्वाहिश लिए दिलों पे होगी हुक़ूमत अपनी
दौरे-शामत से गुजरे इस कशमकश में घिरकर

मैंने चंद रोज़ में देखे हैं कई मोड़ अनजाने
गुजरी है ज़िंदगी कई दौर से मेरी

खुशनशीब हैं वो जो इसमें सुकूं पाते हैं
वरना मोहब्बत को आता नहीं ग़म देने के सिवा

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वीडियो देखने के लिए लिंक पर क्लिक करें :

https://youtu.be/uPdge9dBwFI

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