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Monday, 7 September 2020

कुछ दिलकश शेर | Kuchh Dilkash Sher



मालूम होता ग़र ये खेल लकीरों का
तो ज़ख्मी कर हाथों को तेरी तक़दीर लिख लेता

हर रोज़ गुजरे हम मुश्किलों के दौर से
इन ख्वाहिशों ने शौक अपना मोहब्बत बना दिया

मैंने चंद रोज़ में देखे हैं कई मोड़ अनजाने
गुजरी है ज़िंदगी कई दौर से मेरी

ख़बर नहीं मुझको जो बात सताती है
बस बेखुदी में बेवज़ह दिल उन पे आ गया

पैदाइशी शौक है ख़तरों से खेलना
होता रहे सामना सो मोहब्बत कर ली

कुछ देर अपने दामन की छांव में ले ले
मैं ज़िंदगी के सहरा में भटका हूं बहुत दूर

ये ख्वाहिश लिए दिलों पे होगी हुक़ूमत अपनी
दौरे-शामत से गुजरे इस कशमकश में घिरकर

खुशनशीब हैं जो इसमें सुकूं पाते हैं
वरना मोहब्बत को आता नहीं ग़म देने के सिवा

इन दिनों गर्दिश में है सितारे अपने
वरना एहसान बांटे हैं बहोत खै़रात में हमने

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वीडियो देखने के लिए लिंक पर क्लिक करें :

https://youtu.be/uPdge9dBwFI

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