Ghazal 3 (बहर ए मीर)

2 2 21 -1 22 2 12 1

सबके कर्ज़ उतारे जा रहे हैं
कुछ बे-फ़र्ज़ उतारे जा रहे हैं

अपने हाल तो यारों गर्दिशों में
उनके बाल संवारे जा रहे हैं

कोई भी तो नहीं दुनिया में अपना
तन्हा वक़्त गुजारे जा रहे हैं

रिश्ते छूट रहे हाथों से मेरे
हम गै़रों को पुकारे जा रहे हैं

हाले-दिल ही सुनाया ये सिला मिला
उसके दिल से किनारे जा रहे हैं

मिटा रहा सत्यं वो किश्ती ए वफ़ा भी
हम दरिया में उतारे जा रहे हैं

जाऊं जिधर सदा आती है अब यही
देखो इश्क़ के मारे जा रहे हैं

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