शायरी की डायरी | Shayari Ki Diary



वो अब सामने से भी गुजरे तो धड़कन तेज़ नहीं होती
वरना तस्वीर से भी होती थी घंटो बातें कभी कभी

एक आईने को मैंने आईना दिखा दिया
सब में नुक्स निकालता फिरता था शौक भुला दिया

मैं अपने चेहरे पर खुशी की झलक रखता हूं
अंदर से टूटा हूं मगर दुश्मन को परेशां रखता हूं

मजबूरियों पे पाबंद हूं और चुप-चुप रहा नहीं जाता
फ़र्क इतना है तुम कह देते हो, हमसे कहा नहीं जाता

एतबार कर पैग़ाम ए मोहब्बत जिसके हाथों भेजा
वो क़ासिद भी कमबख़्त मेरा रक़ीब निकला

क्यों लगाये मैंने ख़्वाइशों के मेले
मालूम था जब ख़्वाब हक़ीक़त नहीं होतें

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वीडियो देखने के लिए नीचे लिंक पर क्लिक करें :

https://www.youtube.com/watch?v=uHUESJGuUPY&t=46s

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