ये जरूरी नहीं हर बात शक़्ल ए अल्फाज़ ही हो
मोहब्बत में खामोशी भी हाले-दिल बयां करती है
कई सहराओं से गुज़रा हूं दरिया तक आने में
मुहब्बत क्या है यह बीमार को पता है
दवा है या ज़हर है तजुर्बेकार को पता है
मंजिल और कितनी दूर है मोहब्बत की
अभी और कितना सफ़र में मुझे चलना होगा
क्या तुमने 'सत्यं' को ख़ाक समझ रखा है
इश्क़ फिर से, कोई मजाक समझ रखा है
ना जाने आजकल ये क्या हो गया है मुझे
पहले आईना देखता हूं फिर देखता हूं तुझे
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