ग़ज़ल-
सबके हिस्से हिस्सेदारी होनी चाहिए सबकी अपनी ज़िम्मेदारी होनी चाहिए ख़ुद की ख़ातिर ख़ुद से भी फ़ुर्सत मांगा करो आंखों में इतनी ख़ुद्दारी होनी चाहिए इक मैं ही बेइंतेहा तुझपे मरता रहूं मिरे दिल पे तिरी दावेदारी होनी चाहिए रस्ता लंबा है दोनों की मंज़िल एक है हम में कोई रिश्तेदारी होनी चाहिए धोखा अपने ही दे देते हैं अक्सर यहां अपनी मुट्ठी में दुनियादारी होनी चाहिए कुछ ऐसे कर कायम हरसू अपना रुतबा हर गली कूचे में ताबेदारी होनी चाहिए