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गजल-2 (मुकम्मल)

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इश्क़ में बहोत लोगों के ख़सारे हो गए हमें भी मुहब्बत में ऐसे नज़ारे हो गए वैसे तो वो मुस्कुरा कर रोज़ देखा करती थी इस भरम में सब ज़माने बस पुराने हो गए चांद ने जो ओढ़ रक्खी थी हटा दी वो घटा आंखों के आगे हमें दिलकश उजाले हो गए जिस तरीक़े तौर से देखा हमें उस क़ातिल ने उसके सारे ऐब ओ ख़ामी हमारे हो गए जिसने मुड़कर भी मेरी जानिब ना देखा इक दफ़ा उसकी बेरुख़ी पे नामी मेरे फ़साने हो गए तेरी जुल्फ़ों की वो तासीर लबों का ज़ाइक़ा जाइज़ा तेरे बदन का सब ज़माने हो गए ------------------------------------------

Sher O Shayari (मुकम्मल)

गुनाहों का सूरज निकाला जा रहा है जनाज़ा बेबसी का निकाला जा रहा है ज़माना जिसके नाम से हमें जानता है उसी दौलत को बस निकाला जा रहा है उजाले कफ़न ओढ़कर सोने लगे सहारे सिरों को झुका रोने लगे जहां देखो मातम है छाया हर तरफ फ़रिश्ते ख़ुदा की मौत पर रोने लगे **************************** मेरे हुजरे में ना रख सामान मुजरे का काफ़िरों की बस्ती में इक नेक रहने दे मय पी कर तो मुझसे संभलते नहीं जज़्बात मिरे होश में रहता हूं तो ख़ामोश बेहद रहता हू़ं मेरी नज़रें जब उसकी जुल्फ़ों में उलझ जाती है जगते रहते हैं रातों में नींद कहां आती है यह कैसी मुझे सज़ा दे गया वो सितंगार के क़त्ल भी ना किया और ज़िंदा भी ना छोड़ा ज़फ़ा फ़रेब अश्क़ दर्द बढ़ जाएंगे मुश्किल की तरह रस्ते इश्क़ के मुस्तक़िल आएंगे संगमिल की तरह

ग़ज़ल-1 (मुकम्मल)

सबके हिस्से हिस्सेदारी होनी चाहिए सबकी अपनी ज़िम्मेदारी होनी चाहिए ख़ुद की ख़ातिर ख़ुद से भी फ़ुर्सत मांगा करो आंखों में इतनी ख़ुद्दारी होनी चाहिए इक मैं ही बेइंतेहा तुझपे मरता रहूं मिरे दिल पे तिरी दावेदारी होनी चाहिए रस्ता लंबा है दोनों की मंज़िल एक है हम में कोई रिश्तेदारी होनी चाहिए धोखा अपने ही दे देते हैं अक्सर यहां अपनी मुट्ठी में दुनियादारी होनी चाहिए कुछ ऐसे कर कायम हरसू अपना रुतबा हर गली कूचे में ताबेदारी होनी चाहिए

अंधेरे का सूरज निकला जा रहा है

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अंधेरे का सूरज निकाला जा रहा है संभले हालत को संभाला जा रहा है सच को हर सूरत में छुपाया जाता है झूठ का अख़बार निकाला जा रहा है कट रही उंगलियां नोचे जा रहे जिस्म ग़रीब को दहशत की आदत में ढ़ाला जा रहा है मौसम की नज़ाकत समझो दौरे हाज़िर में पगड़ियों को सरे आम उछाला जा रहा है कल उंगलियां पकड़ जिनकी यतीम बड़े हुए उन्हीं की परवरिश में नुक़्स निकाला जा रहा है कई सांप जकड़े है एक सोन चिड़िया को पालने वाले पर इल्ज़ाम डाला जा रहा है  रखो नज़र दहलीज़ पर ये दौर तुम्हारा है हमारी पुरानी आंख का उजाला जा रहा है मिशाल मुहब्बत की इस क़दर करो क़ायम  जो देखे यही कहे हिंदुस्तान वाला जा रहा है

अधूरा दीवान

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सबके कर्ज़ उतारे जा रहे हैं कुछ बे-फ़र्ज़ उतारे जा रहे हैं 22 21  122  2122 अपने हाल गर्दिशों में है यारों उनके नसीब संवारे जा रहे हैं खुदगर्ज़ बड़े हैं लोग जो एहसान भूल गये हर शख़्स की ख़ातिर दिया जो बलिदान भूल गए आंधियों से गुज़ारिश है अपनी हद में रहें पल भर हमारी क्या आंख लगी औकात भूल गए यह रखना याद मुनाफ़े की तिजारत के वास्ते इश्क़ की नई दुकानों पे कीमत सस्ती होती है ना दिखाया करो डर सैलाबों का सरफ़रोशों को हमारे हौसले से ज़्यादा धार नहीं तुम्हारी तलवार में उसने अपनी चाहत का इज़हार जो किया अधूरी मेरी एक ग़ज़ल मुकम्मल हो गई मेरी उम्मीद पे मेरे अपने ही खरे उतरे है ग़ैर क्या पता मैं किस तरह बहलाता हूं 

Romantic Shayari (Double)

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झूठ नहीं कहता कईं मोहब्बत मैंने की हासिल की उम्मीद ना रखी बस दिल तक ही रही मैंने फिराई थी यूं ही रेत में उंगलियां ग़ौर से देखा तो तेरा अक़्स बन गया कमबख्त़ रात को भी चिढ़ तुझसे हो गई बैठू जो सोचने ढ़ल जाती है तावली मुक़द्दर ही मेरा खराब है शायद वरना खुशनसीब वो हैं जो उनके करीब हैं मालूम होता ग़र ये खेल लकीरों का तो ज़ख्मी कर हाथों को तेरी तक़दीर लिख लेता यह पैग़ाम आया ख़ुदा का मुहब्बत कर ले 'सत्यं' अब क्या कुसूर मेरा जो दिल उन पे आ गया यह कैसे मुकाम पर हम आ खड़े हुए तुम्हें दिल में बसाकर भी तन्हा से लगते हैं यह कैसी सज़ा मुझें वो शख़्स दे गया के क़त्ल भी ना किया और ज़िंदा भी ना छोड़ा तुम   बैठी रहो देर तक  मेरी नज़रों के सामने आज मेरा मन है बहुत मदहोश होने का वो बेरुखी करते हैं मेरे दिल से जाने क्यों जिन्हें करीब से तमन्ना देखने की है जिनका घर है दिल मेरा वो दूर जा बैठे भला कैसे किसी अजनबी को मैं पनाह दूं पूछता जो खुदा तेरी रजा क्या है तो सबसे पहले तेरा नाम मैं लेता तेरे दीदार में कोई बात है शायद लड़खड़ाता है जिस्म मेरा इज़ाज़त के बिना तमाम कोशिशें बेकार ही रही संभल पाने की जब डूब गए हम ...

समंदर से भी यार यारी रखा करो (Ghazal)

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समंदर से भी यार यारी रखा करो या उस पार जाने की कोई तैयारी रखा करो घर जाओ तो आईना जरूर देखना अपनी भी थोड़ी जिम्मेदारी रखा करो संभलकर उडो आसमानों की ऊंचाई पर श्येन से भी अपनी पहरेदारी रखा करो पेड़ लगाए हैं तो पत्थरबाज़ों से रहो होशियार कच्चे फलों पे भी थोड़ी निगरानी रखा करो हमें यह पता चला तो चला के वो बेवफा है आईने तुम ना इस कदर जी भारी रखा करो घर के अंदर दग़ाबाज़ भी दुश्मन से काम नहीं चिरागों पे अपने रोशनी बहुत सारी रखा करो --------------------------------------- देखने के लिए लिंक पर क्लिक करें