Ghazal 5 (मुकम्मल)

ता’उम्र को मिला ज़ख़्म निशानी की तरह,
मैं ख़ून था जो बहा दिया पानी की तरह।

मैंने साथ रहने की अपनों से मिन्नतें की,
वो बात भी करते थे मेहरबानी की तरह।

चाहे जितना भी तुम अहम किरदार बनो,
तुम्हें भुला दिया जाएगा कहानी की तरह।

मिट्टी को मिलना है इक दिन मिट्टी में,
ग़ुरूर भी ढल जाएगा देख जवानी की तरह।

फिर उससे तर्क-ए-त’अल्लुक़ ठीक नहीं,
याद रखना है अगर बात पुरानी की तरह।

मुझे छोड़कर अब ग़ुर्बत में गुज़ारा करती है,
जो मुझ पर हुकूमत करती थी रानी की तरह।

तू भी दुनिया के रंग मुझे दिखाने लगी,
मैं छोड़ दूँगा तुझे अब दिवानी की तरह।

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