दुश्मन को भी नज़र ए इनायत देते हैं हम
गुस्ताख़ी पे उसकी पर्दा गिरा देते हैं हम
शर्मिंदा ही रहेगा जब भी सामना होगा
इज्ज़त उसकी उसी की नज़रों में गिरा देते हैं हम
जिनका दिल है घर मेरा वो दिल के अंदर हैं
अभी और बहुत है चाहत ऐसे दीवानों की
अभी और बहुत है चाहत ऐसे दीवानों की
पैदाइशी शौक है ख़तरों से खेलना
होता रहे सामना सो मोहब्बत कर ली
इन दिनों गर्दिश में है सितारे अपने
वरना एहसान बांटे हैं बहुत खै़रात में हमने
होता रहे सामना सो मोहब्बत कर ली
इन दिनों गर्दिश में है सितारे अपने
वरना एहसान बांटे हैं बहुत खै़रात में हमने
रौनक ना देखिए मेरी सूरत की ए जनाब
मेरे गम को छुपाने का राज़ है ये
मत पूछ मेरी दास्तां-ए-ग़म मुझसे
मैं बेवजह, किसी के आंसू गिराना नहीं चाहता
झूठ नहीं कहता कईं मोहब्बत मैंने की
हासिल की उम्मीद ना रखी बस दिल तक ही रही
मुकद्दर ही मेरा खराब है शायद
वरना खुशनसीब वो हैं जो उनके करीब हैं
मैंने कसम उठाई थी ना गुनाह करने की
मालूम ना था, लोग मोहब्बत को जुर्म समझते हैं
इक दिल-दरिया को नाज़ था अपनी रवानी पे
ठहराव मेरे समंदरे-ग़म देखा शर्मसार हो चली
क्या सुनाए तुमको दास्ताने-दिल
जीये जा रहे हैं ख़्वाहिशों के सहारे
कोई पूछ बैठा के ग़ज़ल क्या है?
मैंने इशारों में, अपने दिल के राज़ खोल दिए
पूछकर गुज़री दास्तां 'सत्यं'
एक शायर को रुला देने का ख़्याल अच्छा है
कईं मोड़ से गुज़रे राहे-उल्फत में 'सत्यं'
सोचा था मैंने यूं, आसानियां होंगी
कुछ इस क़दर उलझा दराज़ मुसीबत 'सत्यं'
के लोग मुझें, दीवाना समझ बैठें
देख कर साज़िश मेरे जिस्मो-ईमान की
होठ चुपचाप सहते रहे आंखों को गवारा ना हुआ
मेरे गम को छुपाने का राज़ है ये
मत पूछ मेरी दास्तां-ए-ग़म मुझसे
मैं बेवजह, किसी के आंसू गिराना नहीं चाहता
झूठ नहीं कहता कईं मोहब्बत मैंने की
हासिल की उम्मीद ना रखी बस दिल तक ही रही
मुकद्दर ही मेरा खराब है शायद
वरना खुशनसीब वो हैं जो उनके करीब हैं
मैंने कसम उठाई थी ना गुनाह करने की
मालूम ना था, लोग मोहब्बत को जुर्म समझते हैं
इक दिल-दरिया को नाज़ था अपनी रवानी पे
ठहराव मेरे समंदरे-ग़म देखा शर्मसार हो चली
क्या सुनाए तुमको दास्ताने-दिल
जीये जा रहे हैं ख़्वाहिशों के सहारे
कोई पूछ बैठा के ग़ज़ल क्या है?
मैंने इशारों में, अपने दिल के राज़ खोल दिए
पूछकर गुज़री दास्तां 'सत्यं'
एक शायर को रुला देने का ख़्याल अच्छा है
कईं मोड़ से गुज़रे राहे-उल्फत में 'सत्यं'
सोचा था मैंने यूं, आसानियां होंगी
कुछ इस क़दर उलझा दराज़ मुसीबत 'सत्यं'
के लोग मुझें, दीवाना समझ बैठें
देख कर साज़िश मेरे जिस्मो-ईमान की
होठ चुपचाप सहते रहे आंखों को गवारा ना हुआ
दुश्मन को भी हम ख़ालिश मोहब्बत सज़ा देते हैं
नज़रों में उसकी अपनी दीद शर्मिंदगी बना देते हैं
नज़रों में उसकी अपनी दीद शर्मिंदगी बना देते हैं
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वीडियो देखने के लिए नीचे लिंक पर क्लिक करें :
https://youtu.be/kHITftC-4Yk
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