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Tuesday, 7 May 2024

बाज़ (शायरी)
















चंद कौऔं पे नई-नई रवानी छाई है
बाज़ से उलझ रहे हैं, मौत कब्र तक ले आई है

यूं ही नहीं कोई किसी से किनारा करता है
बाज़ बुलंदी पे होता है तो अक्सर अकेला होता है

कल मेरी उड़ान बुलंदियों को चूमेगी।
अभी मैं अपने नाखूनों-परों को नोच रहा हूं।।

हवा चाहे किसी भी ओर उड़े ज़माने की
फ़लक की हुक़ूमत सदा श्येन के क़दमों में रहती है








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