अंबेडकर साहब की शायरी | Ambedkar Sahab Shayari
जिसका कोई जवाब न हो, ऐसा कोई सवाल मिले,
वो राह दिखाती लोगों को, जलती कोई मशाल मिले।
मैंने इतिहास के पन्नों को कई बार पलटकर देखा,
'बाबा साहब'-सी दुनिया में दूजी न कोई मिसाल मिले।
एक बाग़बाँ सूखे पेड़ों पर लहू की बारिश करता रहा,
कतरा-कतरा उम्मीद की क्यारियों में भरता रहा।
सूरज भी थक के उठता है रातभर आराम के बाद,
वो मसीहा हमारी ख़ातिर दिन-रात एक करता रहा।
दिया न ख़ुदा ने जो, एक इंसान दे गया,
मुस्कुराहट का अपनी वो बलिदान दे गया।
काल को दे दी क़ुर्बानी अपने लाल की,
बदले में हमें ख़ुशियों का वरदान दे गया।
ख़ुदाओं के शहर में वो ख़ुदा से ज़्यादा दे गया,
औरत को, पिछड़ों को जीने का इरादा दे गया।
ये ब्रह्मास्त्र भी ऊँच-नीच का कल टूट ही जाएगा,
वो जाते-जाते संविधान की मज़बूत ढाल दे गया।
वो शख़्स हर शख़्स की तक़दीर हो गया,
पढ़-लिखकर इंसाफ़ की शमशीर हो गया।
कल्पना में सुनी थी हम ने लक्ष्मण रेखा,
बाबा का लिखा पत्थर की लकीर हो गया।
गुम अंधेरों में थी गुज़रती ज़िंदगी मेरी,
अब सवेरों की राह पर मेरा सफ़र है।
खुल गए सब रास्ते जहां में मेरे लिए,
ये मेरे बाबा की हिदायत का असर है।
एक फ़रिश्ते ने अंधेरों में रोशनी कर दी,
बुझती मशालों में दहकती चिंगारी भर दी।
बदली इंसानियत किताब-ए-क़ानून से,
देकर दर्जा बराबरी का इज़्ज़त ऊँची कर दी।
बड़े नादान हैं, ईमान बदलने की बात करते हैं,
समता का ये विधान बदलने की बात करते हैं।
यही तो लिबास है, जिसमें लिपटी है सबकी इज़्ज़त,
फिर किस मुंह से संविधान बदलने की बात करते हैं।
उस फ़रिश्ते ने हम पर बड़ा उपकार किया है,
आजादी की खातिर खुद को कुर्बान किया है।
तुम्हें अंदाज़ा नहीं सोई हुई क़ौम के लोगों,
काँटों पर चलकर फूलों का बिस्तर हमें दिया है।
वो शख़्स हमें सदियों की इक मिसाल दे गया,
संविधान रचा और समता की मशाल दे गया,
नींद से उठा था एक फ़रिश्ता तूफ़ान की तरह,
और सारी बलाओं को वो अपने साथ ले गया।
दुनिया में कहीं ऐसा नजारा ना हुआ
बे-सहारों का कोई सहारा ना हुआ
यूं तो सूरमा हुए कईं कद्दावर दुनिया में
मेरे भीम जैसा धरती पे दोबारा ना हुआ
दुनिया में कहीं ऐसा नज़ारा न हुआ,
बे-सहारों का कोई सच्चा सहारा न हुआ।
बाबा बहुत आए इस ज़माने में मगर,
बाबा भीम जैसा कोई दोबारा न हुआ।
खुदगर्ज़ बड़े हैं लोग जो एहसान भूल गए,
हर क़ौम की खातिर दिया जो बलिदान भूल गए।
आँधियों से गुज़ारिश है अपनी हद में ही रहें,
बाबा साहब की क्या आँख लगी औक़ात भूल गए
वो शख़्स हमें सदियों की मिसाल दे गया,
संविधान रचा, समता की मशाल दे गया।
नींद से उठा वो फ़रिश्ता तूफ़ान की तरह,
और सारी बलाएँ अपने साथ ले गया।
मेरी उस निशानी को अपनी जान समझ लेना,
हिफ़ाज़त करना उसकी यही ईमान समझ लेना।
क्यों रोते हो मेरे बच्चों, मैं गुज़रा नहीं अभी तक,
गर संविधान बदले तो मुझे बेजान समझ लेना।
दुश्मन की साज़िश को उसने नाकाम कर दिया,
जो भी आया पनाह में, उसे माफ़ कर दिया।
ना शमशीर उठाई, ना भीम ने खंजर उठाया,
बस इल्म की ताकत से हर इंसाफ़ कर दिया।
तेरी नापाक साज़िश और इरादे को समझ रखा है,
बड़ी ग़लतफ़हमी में है जो हमें ख़ाक समझ रखा है।
हमने ज़िगर में उतारी तस्वीर ‘बाबा साहब’ की,
यूँ ही बातों में मिटा दोगे, कोई मज़ाक समझ रखा है।
कुछ फ़रिश्ता कहते हैं उनको, कुछ मसीहा कहते हैं,
सबका अपना बड़प्पन है, सब बड़प्पन में रहते हैं।
छुपकर भी न छुपने वाला वो सूरज एक ऐसा उगा,
जिसको अदब से दुनिया वाले ‘बाबा साहब’ कहते हैं।
Comments
Post a Comment