Sher 11

मोहब्बत में हार गया तुझे तो क्या,
अभी आधी दुनिया मेरी तलाश में है।

उससे इक-तरफ़ा मोहब्बत का सिला यूं मिला यारों,
अज़िय्यत, शर्रिय्यत, फ़ज़ीहत मिली और तो कुछ भी नहीं।

न शराफ़त उसने छोड़ी, न जिस्म की नुमाइश की,
एक दौलतमंद ने हरगिज़ न दौलत की आज़माइश की।

उसने मेरी वफ़ा का तमाशा बना दिया,
मैं समझा कि मोहब्बत महफ़ूज़ हाथों में है।

मालूम है मेरे दिल की दहलीज़ तक उसे,
लेकिन अड़े हैं ज़िद पे कि हम पुकार लें उसे।

कल जितनी गरमी थी, आज उतनी ही नरमी है,
वो दौर बहाव का था, ये दौर ठहराव का है।

मेरी ख़ुश्क आँखों ने बदलता दौर देखा है,
हमने कुछ और देखा था, तुमने कुछ और देखा है।

उफ़! मोहब्बत भी बहुत मजबूरियों का सौदा है,
हर सूरत दिल को दिल से बदलना पड़ता है।

इस तरह से लोग अपना फ़र्ज़ निभा रहे हैं,
बातों से पेट भर रहे हैं, आँसू पिला रहे हैं।

हम शायरों को पेड़ गिनना भी जरूरी है 
हमारी हदे सिर्फ आम खाने तक तो नहीं


Comments

Popular posts from this blog

भारत और भरत?

अंबेडकर और मगरमच्छ

भारत की माता ‘शूद्र’ (लेख)