अंबेडकर साहब के परिनिर्वाण पे शायरी | Baba Sahab Ambedkar Ji ki Shayari




दुनिया में कहीं ऐसा नज़ारा न हुआ,
बे-सहारों का कोई सच्चा सहारा न हुआ।
बाबा बहुत आए इस ज़माने में मगर,
बाबा भीम जैसा कोई दोबारा न हुआ।

खुदगर्ज़ बड़े हैं लोग जो एहसान भूल गए,
हर क़ौम की खातिर दिया जो बलिदान भूल गए।
आँधियों से गुज़ारिश है अपनी हद में ही रहें,
बाबा साहब की क्या आँख लगी औक़ात भूल गए

वो शख़्स हमें सदियों की मिसाल दे गया,
संविधान रचा, समता की मशाल दे गया।
नींद से उठा वो फ़रिश्ता तूफ़ान की तरह,
और सारी बलाएँ अपने साथ ले गया।

मेरी उस निशानी को अपनी जान समझ लेना,
हिफ़ाज़त करना उसकी यही ईमान समझ लेना।
क्यों रोते हो मेरे बच्चों, मैं गुज़रा नहीं अभी तक,
गर संविधान बदले तो मुझे बेजान समझ लेना।

दुश्मन की साज़िश को उसने नाकाम कर दिया,
जो भी आया पनाह में, उसे माफ़ कर दिया।
ना शमशीर उठाई, ना भीम ने खंजर उठाया,
बस इल्म की ताकत से हर इंसाफ़ कर दिया।

कुछ फ़रिश्ता कहते हैं उनको, कुछ मसीहा कहते हैं,
सबका अपना बड़प्पन है, सब बड़प्पन में रहते हैं।
छुपकर भी न छुपने वाला वो सूरज एक ऐसा उगा,
जिसको अदब से दुनिया वाले ‘बाबा साहब’ कहते हैं।

तेरी नापाक साज़िश और इरादे को समझ रखा है,
बड़ी ग़लतफ़हमी में है जो हमें ख़ाक समझ रखा है।
हमने ज़िगर में उतारी तस्वीर ‘बाबा साहब’ की,
यूँ ही बातों में मिटा दोगे, कोई मज़ाक समझ रखा है।

Comments

Popular posts from this blog

भारत और भरत?

अंबेडकर और मगरमच्छ

भारत की माता ‘शूद्र’ (लेख)