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Sunday, 6 December 2020

अंबेडकर साहब के परिनिर्वाण पे शायरी | Baba Sahab Ambedkar Ji ki Shayari




खुदगर्ज़ बड़े हैं लोग जो एहसान भूल गये
हर कौम की ख़ातिर दिया जो बलिदान भूल गए
आंधियों से गुज़ारिश है अपनी हद में रहें
बाबा साहब की क्या आंख लगी औकात भूल गए

वो शख़्स हमें सदियों की मिसाल दे गया
संविधान रचा और समता की मशाल दे गया
नींद से उठा था एक फ़रिश्ता तूफ़ान की तरह
और सारी बलाओं को अपने साथ ले गया

मेरी उस निशानी को तुम अपनी जान समझ लेना
हिफ़ाजत करना उसकी अपना ईमान समझ लेना
क्यों रोते हो मेरे बच्चों मैं गुज़रा नहीं अभी तक
ग़र संविधान ही बदल जाए तो मुझे बेजान समझ लेना

कुछ फ़रिश्ता कहते हैं कुछ मसीहा कहते हैं
यहां सब के अपने बड़प्पन हैं बड़प्पन में रहते हैं
छुपकर भी ना छुपने वाला वो सूरज ऐसा उगा
जिसको अदब से दुनिया वाले बाबा साहब कहते हैं

हर साज़िश को उसने दुश्मन की नाकाम कर दिया
जो भी आ गया पनाह में उसे माफ़ कर दिया
ना शमशीर, ना भीम ने उठाया ख़ंजर
बस इल्म की ताकत से सब इंसाफ़ कर दिया

तेरी नापाक साज़िश को, इरादे को समझ रखा है
बड़ी ग़लतफ़हमी में है जो हमें ख़ाक समझ रखा है
हमने ज़िगर में उतारी है तस्वीर 'बाबा साहब' की
यूं ही बातों में मिटा दोगे कोई मजाक समझ रखा है

मुद्दतों से हमारी उलझनों को साफ़ करते हैं
संविधान के हवाले से हर इंसाफ़ करते हैं
गुज़रे नहीं दुनिया से 'बाबा साहब' दोस्तों
वो तो आज भी हमारे दिलों पे राज करते हैं

दुनिया में कहीं ऐसा नजारा ना हुआ
बे-सहारों का कोई सहारा ना हुआ
यूं तो सूरमा हुए कईं कद्दावर दुनिया में
मेरे भीम जैसा धरती पे दोबारा ना हुआ

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