कहानी
एक बच्चा सड़क के किनारे भीख मांग रहा था, और इस कहानी का लेखक चाय की दुकान पर बैठा उसे देख रहा था। लेखक के इस तरह लगातार देखने पर बच्चे की निग़ाह उस पर पड़ी, तो वह थोड़ा मुस्कुराता हुआ लेखक की ओर बढ़ा और कुछ ही दूरी पर आकर खड़ा हो गया। लेखक ने उसकी तरफ देखा और थोड़ा वह भी मुस्कुराया, तो इस पर बच्चे की थोड़ी हिम्मत बढ़ी और वह बोला- साब कुछ दो ना। इस पर लेखक ने पूछा! क्या खाओगे?
बच्चा : कुछ नहीं साब! बस आप मुझे कुछ पैसे दे दो।
लेखक : क्यों? भूख नहीं है!
बच्चा : है तो, लेकिन
लेखक : बोलो-बोलो क्या बात है?
बच्चा : साब, मुझे दिन में एक ही वक़्त खाना खाने को कहा गया है।
लेखक : आश्चर्यचकित होते हुए! क्यों मम्मी खाना नहीं देती?
बच्चा : नहीं, ऐसा नहीं है, सा...ब।
लेखक : तो फिर क्या बात है?
बच्चा : वो......... कुछ नहीं साब
लेखक : घबराओ मत। बोलो!
बच्चा : मेरे माता-पिता नहीं है, साब
लेखक : औह गॉड! फिर आप रहते किसके साथ हो?
बच्चा : मेरे एक मुंह बोले अंकल है। वही मुझे अपने घर पर रखते हैं।
लेखक : उन्होंने आपको स्कूल नहीं भेजा क्या?
बच्चा : मैं पढ़ता नहीं, साब
लेखक : क्यों! आपको पढ़ना पसंद नहीं है?
बच्चा : ऐसी बात नहीं है साब। मेरे अंकल मुझसे कहते हैं कि- ‘पढ़ कर क्या करेगा?’ सीधा पैसा कमाना सीख और अगर मैं मना करता हूं, तो वे मुझे मारते हैं।
लेखक : ओह! वैसे आपके अंकल क्या करते हैं?
बच्चा : कुछ नहीं! बस शराब पीते हैं।
लेखक : बेटा यदि आप ही कमाते हो तो उनसे बोलो कि- वे आपको दोनों टाइम खाना दिया करें।
बच्चा : मै अगर सुबह के वक़्त खाना मांगता हूं तो अंकल कहते हैं कि- यदि तू दोनों वक़्त खाना खाएगा तो तेरा शरीर स्वस्थ रहेगा और तुझे कोई भीख भी नहीं देगा, तेरा कमज़ोर दिखना बहुत जरूरी है।
लेखक ने जब बच्चे के ऐसे शब्द सुने तो उसका दिल भर आया, और उसके मुंह से एक शब्द तक नहीं निकला।
इसी दौरान बात करते-करते लेखक ने जब अपने दाएं तरफ गौर से देखा तो महसूस किया कि एक व्यक्ति पिछले कुछ मिनट से हमारी तरफ देख रहा था। जब लड़के की भी निग़ाह उस पर पड़ी तो वह भी बहुत ज्यादा घबराने लगा और हड़बड़ाहट में वहां से भागने लगा।
लेखक ने उसे रोकने की कोशिश की लेकिन उसने तो पलट कर भी नहीं देखा। बच्चे के चले जाने के बाद दूर खड़ा व्यक्ति भी वहां से चला गया था।
कई दिन बीत जाने के बाद भी लेखक को इस बात का बहुत अफसोस है कि उस दिन वह उस छोटे अनाथ बच्चे की कोई मदद नहीं कर सका। यदि लेखक उसकी कुछ आर्थिक मदद कर भी देता तो क्या वो उसी के लिए होती? लेखक आज भी उस असमंजस में उलझ जाता है, जब कभी वो किस्सा उसे याद आ जाता है।
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