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ग़मगीन शायरी

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पहले मेरे दिल में वो शमां-ए-मोहब्बत जलाता रहा फिर जुनून पे मेरे कामयाबी की राह बनाता रहा जिसको लेकर गया था मैं एक रोज़ बुलंदी पर वही पल-पल अपनी नज़र से मुझे गिरता रहा वो मेरी हदे-तसव्वुर से गुजरता क्युं नहीं नशा उसके अंदाज़ का उतरता क्युं नहीं मैं हैरान हूं यूं सोचकर उसके बारे में वक़्त के साथ हुस्न उसका ढलता क्युं नहीं सारे सच उसके झूठ में बदलने लगे यह सोचकर मेरी आंख से आंसू उतरने लगे गले लगा कर करता था वो वफ़ा की बात आज सोचा तो जिस्म से दम पिघलने लगे गुनाहों का सूरज निकाला जा रहा है जनाज़ा बेबसी का निकाला जा रहा है ज़माना जिसके नाम से हमें जानता है उसी दौलत को बस निकाला जा रहा है उजाले कफ़न ओढ़कर सोने लगे सहारे सिरों को झुका रोने लगे जहां देखो मातम है छाया हर तरफ फ़रिश्ते ख़ुदा की मौत पर रोने लगे

अंधेरे का सूरज निकला जा रहा है

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अंधेरे का सूरज निकाला जा रहा है संभले हालत को संभाला जा रहा है सच को हर सूरत में छुपाया जाता है झूठ का अख़बार निकाला जा रहा है कट रही उंगलियां नोचे जा रहे जिस्म ग़रीब को दहशत की आदत में ढ़ाला जा रहा है मौसम की नज़ाकत समझो दौरे हाज़िर में पगड़ियों को सरे आम उछाला जा रहा है कल उंगलियां पकड़ जिनकी यतीम बड़े हुए उन्हीं की परवरिश में नुक़्स निकाला जा रहा है कई सांप जकड़े है एक सोन चिड़िया को पालने वाले पर इल्ज़ाम डाला जा रहा है  रखो नज़र दहलीज़ पर ये दौर तुम्हारा है हमारी पुरानी आंख का उजाला जा रहा है मिशाल मुहब्बत की इस क़दर करो क़ायम  जो देखे यही कहे हिंदुस्तान वाला जा रहा है