अंधेरे का सूरज निकला जा रहा है
अंधेरे का सूरज निकाला जा रहा है संभले हालत को संभाला जा रहा है सच को हर सूरत में छुपाया जाता है झूठ का अख़बार निकाला जा रहा है कट रही उंगलियां नोचे जा रहे जिस्म ग़रीब को दहशत की आदत में ढ़ाला जा रहा है मौसम की नज़ाकत समझो दौरे हाज़िर में पगड़ियों को सरे आम उछाला जा रहा है कल उंगलियां पकड़ जिनकी यतीम बड़े हुए उन्हीं की परवरिश में नुक़्स निकाला जा रहा है कई सांप जकड़े है एक सोन चिड़िया को पालने वाले पर इल्ज़ाम डाला जा रहा है रखो नज़र दहलीज़ पर ये दौर तुम्हारा है हमारी पुरानी आंख का उजाला जा रहा है मिशाल मुहब्बत की इस क़दर करो क़ायम जो देखे यही कहे हिंदुस्तान वाला जा रहा है