Sher 3 (मुकम्मल)
हम बेख़ुदी में जिसको सज़दा करते रहे कभी गौर से ना देखा पत्थर बुत है वो तुझे सताने की मुझे बर्दाश्त की नेमत अता की है ख़ुदा ने हर इंसान बड़ी फ़ुर्सत लगाकर ही बनाया है झूठ नापने का अगर कोई पैमाना होता मिरी मुस्कुराहट को उसने ज़रा जाना होता हज़ारों मुहब्बत मिरे हिस्से आयी लेकिन जिसे टूट कर चाहा मैंने मिरा ना हुआ मैंने फिरायी थी 'सत्यं' रेत में उंगलियां ग़ौर से देखा तो तेरा अक़्स उभरने लगा पूछता जो ख़ुदा तेरी रज़ा क्या है जानां अव्वल तिरा नाम मैं लेता तक़दीर ही मेरी मुझसे ख़फ़ा है वर्ना खुशदिल तो हमारे रक़ीब हैं होता ग़र मालूम किस्मत की लकीरों का तो ज़ख्मी करके हाथ तिरी तक़दीर मैं लिख लेता ख़ुदा की है रहमत ये मेरे मुक़द्दर में वगरना सितमगर वो मासूम ना होता