दांत मनुष्य का एक महत्वपूर्ण अंग है। जिसकी सहायता से मनुष्य खाना खाने से लेकर धागा काटने व कुछेक वस्तुओं को छिलने का काम आसानी से कर लेता है। मुंह में इनकी संख्या अधिकतम (32) बत्तीस हो सकती हैं जिनमें से दो दांतो के उगने का कोई निर्धारित समय नहीं होता है तथा वे दोनो ही ‘अक्ल दाढ़’ कहलाती हैं।
दांत कभी भी ये साबित नहीं करते हैं कि- दांतधारी जीव क्या खायेगा? क्योंकि आदिकाल में मानव मांस ही खाता था। उसे अन्य खाद्य-पदार्थों के विषय में ज्ञान नहीं था। जैसे-जैसे उसे इनके विषय मेंं ज्ञान होता रहा उसने अपनी आवश्यकताओं को अपनी सोचानुसार बदल लिया तथा बुद्धिजीवी होने का प्रमाण दिया।
दांतो का मांस खाने से कोई सम्बंध नहीं है क्योंकि पक्षी गिद्ध जिसकी चोंच में एक भी दांत नहीं होता वह आजीवन मांस के अलावा कुछ नहीं खाता। यह तो प्रवृति, आवश्यकता, वातारण, ज्ञान व उदारता (स्नेह) पर आधारित होता है और यह भी हो सकता है कि मांस खाने वाले जीव ऐसे वातावरण में जी रहे है जोकि उनके लिए अनुकूल नहीं है या फिर यह भी हो सकता है कि प्रतिकूल जीनों की उपस्थिति के कारण उनकी बुद्धि का पूर्णरूपेण विकास ही नहीं हुआ, जिससे कि वे मानवता के अर्थ को समझ सके।
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