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Showing posts from January, 2021

शायरी की डायरी | Shayari Ki Diary

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वो अब सामने से भी गुजरे तो धड़कन तेज़ नहीं होती वरना तस्वीर से भी होती थी घंटो बातें कभी कभी एक आईने को मैंने आईना दिखा दिया सब में नुक्स निकालता फिरता था शौक भुला दिया मैं अपने चेहरे पर खुशी की झलक रखता हूं अंदर से टूटा हूं मगर दुश्मन को परेशां रखता हूं मजबूरियों पे पाबंद हूं और चुप-चुप रहा नहीं जाता फ़र्क इतना है तुम कह देते हो, हमसे कहा नहीं जाता एतबार कर पैग़ाम ए मोहब्बत जिसके हाथों भेजा वो क़ासिद भी कमबख़्त मेरा रक़ीब निकला क्यों लगाये मैंने ख़्वाइशों के मेले मालूम था जब ख़्वाब हक़ीक़त नहीं होतें ________________________________ वीडियो देखने के लिए नीचे लिंक पर क्लिक करें : https://www.youtube.com/watch?v=uHUESJGuUPY&t=46s

ख़ुदा | Khuda | Shayari

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क्या खूब बख़्शी है, ए ख़ुदा ख़्यालों की नेमत तूने हर कोई जिसे चाहे मोहब्बत कर सकता है यह पैग़ाम आया ख़ुदा का मुहब्बत कर ले 'सत्यं' अब क्या कुसूर मेरा जो दिल उन पे आ गया पूछता जो ख़ुदा, तेरी रिज़ा क्या है तो सबसे पहले तेरा नाम मैं लेता तू दे सज़ा उनको या ख़ुदा ऐसी के प्यार उनका भी किसी बेखुद पर आए चल ले चल हाथ पकड़ कर, मुझको दर ख़ुदा के क़ाफ़िर था मैं, जो बेखुदी में सजदा उसे किया एक रोज़ उसे मांगेंगे, दुआ कर ख़ुदा से फ़िलहाल लुत्फ़ उठा रहा हूं, इंतज़ार का कोई ऐसी करामात ख़ुदा, उसे भूल जाने की कर के याद भी ना रहू और इल्ज़ाम भी ना सिर हो कुछ इस कदर खोया हूं, तेरी उल्फ़त में सितमग़र कोई कर रहा तहे-दिल से ख़ुदा की इबादत जैसे तुम सजदा करो उसे लिहाज़ ना हो ग़र ये मुमकिन है फिर कैसे किसी बुत को तुम ख़ुदा बनाते हो? ख़ुदा की रहमत है रुसवाई मेरे मुक़द्दर में वरना मासूम कोई सितमगर नहीं होता जो वक़्त हमने तेरी चाहत में गंवाया इबादत में लगाते तो ख़ुदा मिल जाता कह दे ख़ुदा उनसे चले आए मुझसे मिलने आंखे झपकती है मेरी कहीं देर ना हो हर कोई रखता है ख़्वाहिश इक बार उनको देखकर ख़ुदा करे बार-बार अब उनकी दीद हो ________...

नशा | Nasha | शराब और आंखें

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मय पी कर नादां जज़्बात मेरे बहकते हैं होश में यार ख़ामोश मैं बहुत रहता हूं ******************* तुम बैठी रहो देर तक, मेरी नजरों के सामने आज मेरा मन है बहुत मदहोश होने का या तो आंखों में उतर जा या जाम में उतार दें मेरी फ़ितरत है, मैं दो नशे एक साथ नहीं करता शराब पी है लेकिन, बहुत होश में हूं तू नज़र हटा नज़र से बहकने का डर है मयखाना बंद है, उसका घर भी दूर है आज रात याद उसकी, मुझे क़त्ल करके छोड़ेगी तमाम कोशिशें बेकार ही, रही संभल पाने की जब डूब गए हम, तेरी आंखों की गहराई में तेरी आंखें नहीं तो क्या छलकता जाम पीते हैं अब कोई तो सहारा हो जीये जाने के लिए मत फूंक मय से, अपना जिग़र ,सत्यं, बेख़ुद ही होना है तो इश्क़ में जला इस तुम ये कैसे सियासती लफ़्ज़ों में बात करती हो शराब छोड़ने को कहती हो और पास भी आती नहीं के शराब जो हराम थी, हलाल हो गई इजहारे-मोहब्बत होश में ना हुआ बेखुदी में कर दिया तुम ये कैसे सियासती लफ़्ज़ों में बात करती हो शराब छोड़ने को कहती हो और पास भी आती नहीं पिया करते थे कभी एक जाम से अब तलब बढ़ चुकी, दो आंखें चाहिये हाथ में शराब है आगोश में हो तुम  अब फैसला तुम ही करो मैं...

संबंध | Sambandh | Rishtedari | Shayari

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मेरा दिल गवाही ये बार-बार देता है जब है पिता सलामत तो चाहत नहीं ख़ुदा की हमने चिरागों को तालीम कुछ ऐसी दे रखी थी के घर जल गए दुश्मन के, इल्ज़ाम भी हवाओं पे गया मेरे अपने मेरी उम्र को छिपाते रहे शायद बड़ों की नज़र में छोटे बच्चे ही होते हैं आ मेरे जिग़र के टुकडे तुझे आंखों में बसा लूं तूने चलना भी नहीं सीखा और दरिया सामने है तेरे कई दिनों से मुझे कोई दर्द नहीं मिला मलाल ये है के अपनों से भी दूर हूं मैं मेरी बदनसीबी ने ख़ाक में मिला रखा था मुझें वो ख़िज़ां के मौसम की आंच दिल में दफ़न है फिर भी छूते रहें क़दम मेरे क़ामयाबी की मंज़िल ये मेरी मां की दुआओं का असर है। जिनके हाथ तजुर्बे से भरे होते हैं जिंदगी के खेल में माहीर वही लोग बडे होते हैं साथ रखना हमेशा बुजुर्गों को अपने बलाएं छूती नहीं, जिन हाथ में ताबीज़ बंधे होते हैं

बहका-बहका मौसम

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अपनी ख़्वाहिशों को यूं ना आज़माया कर कभी भीगने का मन हो तो भीग जाया कर तेरे बदन की शायरी में तमाम हरूफ बड़े कटीले हैं मैं शायर बड़ा गठीला हूं इज़ाज़्त दो कुछ अपना लिखूं हमें यूं लगा कि मोहब्बत का जमाना है फरवरी रोज़ ले लिया उसने पर रोज़ देने से मना कर दिया इन दिनों ही तो हम कुछ जुदा-जुदा से रहने लगे एक ज़माने में हमने फूलों की बहोत इज्जत की अब मैं अपने होठों को प्यासा नहीं रखता कई सहराओं से गुज़रा हूं दरिया तक आने में बेशक तू किसी से भी प्यार कर पर मुझे उस चीज से मत इनकार कर ता-उम्र साथ देना ना देना तो तेरी मर्जी है पर जरूरत के वक्त तो मत इनकार कर यह आलम शहनाई का होता तो अच्छा होता हिसाब जज़्बातों की भरपाई का होता तो अच्छा होता कमबख्त कंबल की आग भी अब बुझने लगी इस सर्दी इंतजाम रजाई का होता तो अच्छा होता ये सर्द रातें गरमा जाए तो क्या हो तन्हाई मेरी महक जाए तो क्या हो मैं तसव्वर में पढ़ रहा हूं हर-रात जिसे वही किताब हकीकत बन जाए तो क्या हो