संबंध | Sambandh | Rishtedari | Shayari














मेरा दिल गवाही ये बार-बार देता है
जब है पिता सलामत तो चाहत नहीं ख़ुदा की

हमने चिरागों को तालीम कुछ ऐसी दे रखी थी
के घर जल गए दुश्मन के, इल्ज़ाम भी हवाओं पे गया

मेरे अपने मेरी उम्र को छिपाते रहे
शायद बड़ों की नज़र में छोटे बच्चे ही होते हैं

आ मेरे जिग़र के टुकडे तुझे आंखों में बसा लूं
तूने चलना भी नहीं सीखा और दरिया सामने है तेरे

कई दिनों से मुझे कोई दर्द नहीं मिला
मलाल ये है के अपनों से भी दूर हूं मैं

मेरी बदनसीबी ने ख़ाक में मिला रखा था मुझें
वो ख़िज़ां के मौसम की आंच दिल में दफ़न है
फिर भी छूते रहें क़दम मेरे क़ामयाबी की मंज़िल
ये मेरी मां की दुआओं का असर है।

जिनके हाथ तजुर्बे से भरे होते हैं
जिंदगी के खेल में माहीर वही लोग बडे होते हैं
साथ रखना हमेशा बुजुर्गों को अपने
बलाएं छूती नहीं, जिन हाथ में ताबीज़ बंधे होते हैं

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