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कुछ दिलकश शेर | Kuchh Dilkash Sher

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मालूम होता ग़र ये खेल लकीरों का तो ज़ख्मी कर हाथों को तेरी तक़दीर लिख लेता पैदाइशी शौक है ख़तरों से खेलना होता रहे सामना सो मोहब्बत कर ली हर रोज़ गुजरे हम मुश्किलों के दौर से इन ख्वाहिशों ने शौक अपना मोहब्बत बना दिया कुछ देर अपने दामन की छांव में ले ले मैं ज़िंदगी के सहरा में भटका हूं बहुत दूर ये ख्वाहिश लिए दिलों पे होगी हुक़ूमत अपनी दौरे-शामत से गुजरे इस कशमकश में घिरकर मैंने चंद रोज़ में देखे हैं कई मोड़ अनजाने गुजरी है ज़िंदगी कई दौर से मेरी खुशनशीब हैं वो जो इसमें सुकूं पाते हैं वरना मोहब्बत को आता नहीं ग़म देने के सिवा _________________________ वीडियो देखने के लिए लिंक पर क्लिक करें : https://youtu.be/uPdge9dBwFI

भुला नहीं सका जिसे - कविता

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मैंने देखा था उसे भुला नहीं सका जिसे। नैंनों से क्षणभर भी औझल नहीं किया जिसे।। मुझें अच्छी तरह याद है, वो दिन का पहर घन थे गगन मे उमड़े, शीतल थी दोपहर। मनमोहक, आकर्षक वातावरण था और मंद गति में वायु लहरत-लहर मैंने देखा था उसे --------------------------- उसे देखा था एक यात्रा पर लकडियाँ काटते हुएँ शांत, सरल-स्वभाव सहित कार्यरत होते हुए। मुख-मंडल पर ओज धरे, लीन थी कर्म कर्त्तव्य समझते हुए।। मैंने देखा था उसे --------------------------- प्रसन्नचित आँखें, आकर्षण परिपूर्ण युवा अवस्था में प्रवेश पाया था। सावल तन में योग्यता थी और यौवन सिर मंडराया था।। मैंने देखा था उसे --------------------------- आकर्षक रूप किंतु संस्कार का पहरा था आँखें सुंदर, रंग झील-सा गहरा था। ना कर सका उसकी समानता किसी से व्यर्थ संसार यह सारा था। मैंने देखा था उसे ---------------------------  मैं एक वृक्ष की छाँव से उसे निहार रहा था देखा मुझे तो स्वयं में सिमटने लगी। नैंन झुकाएं, दृष्टि बचाई तदोप्तरांत कार्य करने लगी।। मैंने देखा था उसे --------------------------- आज भी स्वप्न में, मैं देखता हूँ उसे मेरे पहले प्रेम न...