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दर्द भरी शायरी | Best Sad Sher ever

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मैंने ज़माने की हर शय को बदलते देखा है इक तेरी याद के मौसम के सिवा क्यों लगाये मैंने ख़्वाहिशों के मेले मालूम था जब ख़्वाब हक़ीक़त नहीं होतें कैसे निकालूं दिल से बता तुझें सनम मैंने तो दर आये को भी गले लगाया है क्या सुनाए तुमको दास्ताने-दिल जीये जा रहे हैं ख़्वाहिशों के सहारे एक रोज़ उन्हें मांगेंगे दुआ कर खुदा से फ़िलहाल लुत्फ़ उठा रहा हूं इंतज़ार का मत मार पत्थर पे अपना सिर सत्यं चोट पहुंचेगी तुझे दर्द होगा बहुत वक़्त गुज़ार लूंगा किसी भी मुकाम पे मग़र होगी बड़ी दिक्कत शाम के ढ़लते _________________________ वी डियो देखने के लिए लिंक पर क्लिक करें : https://youtu.be/T4vfAbUZsyk

मेरी इल्तिजा

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ये इल्तिजा है मेरी रहमत की निगा ह  रखने वाले से वो निगहबान तुम्हारा रहे सदा ना आए कोई ग़म का शूल आपकी राह में दामन महका रहे यूं ही खुशियों के फूलों से सदा बढ़ते रहो इस क़दर मुकाम पर अपने जैसे पूर्णिमा के चांद की चमक बिखर जाए आपके नाम की खुशबू जहां में महक उठे इस कदर तुम्हारी जिंदगानी का चमन कभी जो आए अंधेरा साया तुम्हारे जीवन में कदम ना डगमगाने पाए घबराकर हौसला जगाए रखना अंतरात्मा में छठ जाएगा यही बादल तुम्हें कामयाबी का मुंह दिखाकर जगाना ऐसी सर्द चांदनी जीवन में के लोग चकोर बनकर उसे छूना चाहे लेकिन तुम्हारे चांद से किरदार पे कभी गुमान का ग्रहण न लगने पाए

धीरे धीरे

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राहे-उल्फ़त में क़दम ना ज़ल्दबाज़ी में बढ़ा तुम निकलना भी चाहोगे तो फंस जाओगे धीरे-धीरे इश्क़ है जनाब, शराब की क्या बिसात चढ़ गया है नशा तो उतरेगा धीरे-धीरे आगाज़ ए ज़िंदगी में आते हैं उतार-चढ़ाव बहुत तज़ुर्बे की तपिश में जलोगे तो संभल जाओगे धीरे-धीरे दबाई गई है कईं आवाज़ें मज़हब की आड़ में कईं औरत उठाने लगी है सिर अपना धीरे-धीरे खूबसूरती देखनी वाले की नज़र में होती है "सत्यं" ये बात समझनी चाहिए हर नाज़नीं को धीरे-धीरे हमने अभी सपना बोएं है जिंदगी नइ बोई कोई मिल जाए हमसफ़र तो बसा लेंगे घर धीरे-धीरे मेरे जेहन पे छाया है खुमार तेरी मुहब्बत का काश! तू भी तड़प उठे मेरी मुहब्बत को धीरे-धीरे

हम क्या उम्मीद करें?

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मेरे कांधे पे किसी मेहरबां ने हाथ तक ना रखा सरगोशी करें आगोश में कोई, हम क्या उम्मीद करें ख़्वाब उसने भी कोई मेरे नाम का देखा होगा हम यूं ही उसकी चाहत में हर रात नहीं जले ना दिन ढला ना शब गुज़री तन्हाई की कोई आके हमें बता दें हम करें तो क्या करें ये बात हमारी उल्फ़त की सारे जहां को है मालूम दीवारों की साज़िश है हम दोनों को ना पता चले अपनी हिफाज़त का ज़िम्मा अपने हाथ में लो सियासत का एतबार नहीं कब-किस ओर चाल चले जिम्मेदारियों ने मुझको सबसे दूर कर दिया अब तेरी फिक्र करें या मां की फिक्र करें एक उम्र गुज़ारी मुफलिसी की, जलाया लहू अपना हम यूं ही एक रात में तो शायर नहीं बने जब तक है तू सामने दो बात हंस के कर  क्या पता कल एक-दूसरे से हम मिले ना मिले

एक नज़र इधर भी देख लो

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  जुबां थमे, नज़र रुके, क़यामत बरपे तुम जो एक बार सलीके से दुपट्टा औढ़ लो उड़ रही है तुम्हारे बदन की खुशबू झुलस रही है नमी आवारा हवाओं से ताल्लुक़ रखना छोड़ दो अपने दुपट्टे को संभालो पैर पड़ जाए ना किसी का फ़ुज़ूल रिश्तों को बेकार में निभाना छोड़ दो फूलों से कहो कांटो से तुम्हें कोई ख़तरा नहीं शाख से लगे रहना है तो ताका-झांकी छोड़ दो मेरी शिकायतें नहीं तो ऐसा नहीं मैं परेशां नहीं मजबूरियों को मेरी आदत समझना छोड़ दो आजकल घबराया हुआ सा रहता हूं मैं बहुत हाथ सीने पे रख मेरी ज़िंदगी को नया मोड़ दो पाश-पाश हो गया है मेरा शीशा ए दिल जोड़ दो देख लो खुद को, आईना तोड़ दो

एक शख़्स

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मैं गुमनामियों के अंधेरे में खोया था अब तलक ताज़्जुब है इस भीड़ में कोई मुझे पहचानता है जो उम्रभर मेरा ना हो सका बदनसीबी देखो मेरा ग़ैर का होने का बुरा मानता है मिट चले मेरी नज़र से जिहालत के अंधेरे वो शख़्स पराया है जो ख़ुद को मेरा मानता है कोई ना पढ़ सका मेरे चेहरे की लिखावट के राज़  एक खुदा है जो मेरा हाल बखूबी जानता है वैसे तो मेरी तबीयत में कोई फ़र्क नहीं आता एक वो एक नज़र से मुझे लड़खड़ाने का हुनर जानता है।

दीवान ए सत्यं

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प्यार की बस एक यही शर्त होनी चाहिए इंसान की इंसान को पहचान होनी चाहिए यह बात जुदा है के वो नहीं आएंगे पर दिल की इल्तिजा है थोड़ा इंतजार और कर एक दौर था तेरे आगोश में कटती थी मेरी रातें एक दौर है मेरे हाथों को तेरे शाने भी मयस्सर नहीं कल जितनी गरमी थी, आज उतनी नरमी है वो दौर जवानी आने का था, यह दौर जवानी जाने का है मालूम है मेरे दिल की दहलीज़ उन्हें लेकिन। ज़िद पे अड़े हैं कोई उनको पुकार ले।। आज प्यार को जिस्मानी मकसद बता रहे कुछ लोग अच्छा ही रहा जो हमने किसी से इज़हार ना किया कुछ इस तरह से लोग अपना फ़र्ज़ निभा रहे हैं बातों से पेट भर रहे आंसू पिला रहे हैं