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Tuesday, 9 July 2024

वो छोड़ गया मुझे (Nazm)














वह जा चुका, मुझे अपनी गिरफ़्त से निकाल के
हम ही उलझे हुए हैं जाल में, सिर अपना डाल के

वैसे तो वो ग़ैर से भी खुलके मिलता है
हम ही आदमी ना निकले, उसके ख़्याल के

उसका रिश्ता फक़्त सुफ़ेद झूठ पे टिका था
कैसे मुकम्मल देता ज़वाब वो, मेरे सवाल के

उस बे-मुरव्वत ने बेरुख़ी की इंतिहा कर दी
हम देखते रहे तमाशे, उसके कमाल के

उम्रभर की चाहत का बदला हमको यूं मिला
हिस्से में आए किस्से बस, उसके मलाल के

अब जो मिला है तजुर्बा उसे खोकर तो ये जाना
मोहब्बत में उठते हैं क़दम, बहुत देखभाल के

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