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Saturday, 21 September 2024

Sher (2 lines)











ये जरूरी नहीं हर बात शक़्ल ए अल्फाज़ ही हो
मोहब्बत में खामोशी भी हाले-दिल बयां करती है

मुहब्बत क्या है यह बीमार को पता है
दवा है या ज़हर है तजुर्बेकार को पता है

मंजिल और कितनी दूर है मोहब्बत की
अभी और कितना सफ़र में मुझे चलना होगा

क्या तुमने 'सत्यं' को ख़ाक समझ रखा है
इश्क़ फिर से, कोई मजाक समझ रखा है

ना जाने आजकल ये क्या हो गया है मुझे
पहले आईना देखता हूं फिर देखता हूं तुझे

जब कभी तन्हाई में तेरी याद ने सताया मुझे
बस मूंदकर आंखों को तेरी सूरत देखा किए

Saturday, 14 September 2024

नक़ाब शायरी




















यूं आसान नहीं होता सच झूठ समझ पाना
कईं नक़ाब पड़े हैं इक चेहरे पे आजकल

कब तक मुझें पाबंदियों कि हयात में जीना होगा
किस फ़र्ज़ से गै़रत के नाम जहन्नुम में जीना होगा

रुख़ से नक़ाब हटाकर नज़र अंदाज़ करती हो
माज़रा क्या है जो हिजाब से दीदार करती हो?