कैसी तौबा कैसा सज़्दा बेगुनाह के लिए सब बे-ईमानी है यारों एक तन्हा के लिए मैं चेहरे पर खुशी की झलक रखता हूं अंदर से टूटा हूं दुश्मन नज़र रखता हूं आज जाने गरज़ कैसी निकाल आई आसमां इक जमीं पर पिघलने लगा दर्दे-इश्क़ में मैं बद-हवास तो नहीं ला-इलाज हूं कुई बदज़ात तो नहीं यूं ही नइं कोई किनारा करता है इकला बाज़ अक्सर बुलंदी छूता है अपने चहरे पर हल्की मैं मुस्कान रखता हूं ख़ुद टूटा हूं पर बैरी को हैरान रखता हूं वो बेरुख़ हो जाते हैं मुझे देखकर हम बेख़ुद हो जाते हैं जिन्हें देखकर पैग़ाम यूं आया ख़ुदा का इश्क़ कर ले 'सत्यं' अब क्या खता मेरी बता दिल तुझपे आया मेरा दिल में दबी वो एक जरूरत मिल जाए मुझे प्यार में डूबी कोई मूरत मिल जाए इसमें दुनिया का बहुत भला हो सकता है मिरे ख़्यालों को जो ग़ज़ल की सूरत मिल जाए