सरगोशी करें आगोश में कोई, हम क्या उम्मीद करें
ख़्वाब उसने भी कोई मेरे नाम का देखा होगा
हम यूं ही उसकी चाहत में हर रात नहीं जले
ना दिन ढला ना शब गुज़री तन्हाई की
कोई आके हमें बता दें हम करें तो क्या करें
ये बात हमारी उल्फ़त की सारे जहां को है मालूम
दीवारों की साज़िश है बस हम दोनों को ना पता चले
दीवारों की साज़िश है बस हम दोनों को ना पता चले
अपनी हिफाज़त का ज़िम्मा अपने हाथ में लो
सियासत का एतबार नहीं कब-किस ओर चाल चले
जिम्मेदारियों ने मुझको सबसे दूर कर दिया
अब तेरी फिक्र करें या मां की फिक्र करें
एक उम्र गुज़ारी मुफलिसी की, जलाया लहू अपना
हम यूं ही एक रात में तो शायर नहीं बने
जब तक है तू सामने दो बात हंस के कर
क्या पता कल एक-दूसरे से हम मिले ना मिले
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