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Tuesday, 12 March 2024

सियासत शायरी











कुछ ऐसी सोच माहौल की बना देनी चाहिए
उठती हर आवाज़ दबा देनी चाहिए
जरूरी नहीं के शमशीर क़त्ल के वास्ते ही उठे
कभी-कभी दहशतगर्दी के लिए भी लहरा देनी चाहिए

तुम सजदा करो उसे लिहाज़ ना हो, ग़र ये मुमकिन है
फिर कैसे किसी बुत को तुम ख़ुदा बनाते हो?

अभी तुम्हारा ओहदा निचले दर्जे का है।
अभी तुम्हें सियासत के मायने मालूम नहीं।।

मेरी इन खुश्क आंखों ने एक सदी का दौर देखा है
कब्रिस्तान में लेटी लाशों का नज़ारा कुछ और देखा है

यूं आसान नहीं होता, सच झूठ समझ पाना
कईं नक़ाब पड़े हैं, एक चेहरे पे आजकल

कब तक मुझें पाबंदियों कि हयात में जीना होगा
किस फ़र्ज़ से गै़रत के नाम, जहन्नुम में जीना होगा

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