पहली बार का नशा रहता है
















क्या सितम है तेरे आने का ख़्याल बना रहता है
तू मेरा है कि नहीं यही सवाल बना रहता है

तेरे चेहरे में ऐसा क्या है ये तो मालूम नहीं
फिर एक तुझपे ही क्युं मेरा ध्यान लगा रहता है

जब कभी देखता हूं मैं पलट कर तुझे
हर बार वही पहली बार का सा नशा रहता है

लोग हंसते हैं मुझपे तेरा नाम ले लेकर
ये क्या कम है, तेरे नाम से मेरा नाम जुड़ा रहता है

उसकी आंखें सुर्ख़ बनी रहती है आजकल
क्या वो भी मेरी तरह रातभर जगा रहता है

लोग आते हैं ग़म भुलाते हैं चले जाते हैं
यह मकान यूं ही वीरान बना रहता है

अब समंदर भी मुंह देखकर पानी पिलाने लगा
प्यासा आजकल बस किनारे पे खड़ा रहता है





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