तूफ़नों में दरिया में नाव चलानी पड़ती है
















कहां आसां होता है सफ़र, इक तरफा मुहब्बत का
तूफ़नों में दरिया में नाव चलानी पड़ती है

यूं ही नहीं बनता ख़ुदा, कोई किसी का मुहब्बत में
बदले वफ़ा के उनसे वफ़ा निभानी पड़ती है

किसी के दिल में उतरने का यही तो पहला क़दम है
नज़रे दुनिया से बचाकर उससे नज़र मिलानी पड़ती है

मुहब्बत की हिफ़जत करनी पड़ती है बड़ी फ़िक्री से
छुपकर ज़माने से यह रस्म निभानी पड़ती है

यूं ही नहीं आसानी से मिलता है कोई चाहने वाला
किसी के दिल में बसने की कीमत चुकानी पड़ती है

कईं बार वो छोड़ जाने को कहता है बीच राह में
दर्द-ए-जिग़र से उसे आवाज़ लगानी पड़ती है

भुला चुका हूं वैसे तो उसे दुनिया की नज़र में
महफ़ूज़ हवा से रखकर यह समां जलानी पड़ती है

के इश्क का अंदाज़ है क्या, किसी दिलदार से पूछो
जलाकर खुद को जिंदगी उनकी रोशन बनानी पड़ती है


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