बरसों की शनासाई

एक शख़्स की और मेरी शनासाई है, लड़ाई है
दुनिया की ना माने तो वो प्यार भी कर सकता है

सुना है वो शख़्स कान का बहुत कच्चा है
किसी ग़ैर की बातों पे एतबार भी कर सकता है

अपने दिल की बात कहने से पहले कईं दफ़ा सोचो
सामने वाला बेफ़िक्री से इंकार भी कर सकता है

उससे इश्क में सब कुछ ला-हासिल लगा मुझे
काम पे रखने से पहले ख़बरदार भी तो कर सकता है

वो रहता है हमेशा दुश्मनों के साथ मिलकर
वो चाहे तो मुझे होशियार भी कर सकता है

उसी का हाथ है यारों साज़िश-ओ-नवाज़िश में
वो साबित मुझे धोखे से गुनहग़ार भी कर सकता है

अब यूं ना दिखाओ डर सैलाबों का सरफ़रोशों को
जान हथेली पे हो जिसकी दरिया पार भी कर सकता है


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