Rewrite these
हम बेखुदी में जिसको सज़दा रहे करते कभी गौर से ना देखा, पत्थर का बुत है वो बादलों से कहदो उसके घर जाके बरसे के याद हमारी भी उस बेख़बर को आए काश के ये झूठ नापने का कोई पैमाना होता तो मेरे मुस्कुराने का राज़ उसने समझा होता तुझे सताने की तो मुझे बर्दाश्त की नेमत बक्शी है ख़ुदा ने हर शख़्स को बड़ी फ़ुर्सत से बनाया है