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Showing posts from February, 2020

हिदायत ए इस्लाम

दिल जब लगे अपना तुम्हें मैला कभी, पाँच वक़्त हाथ वुजू कर पाक किया करो तय तेरी हो जाएगी जन्नत में ज़मीं, बावक़्त अदा रोज़ नमाज़ किया करो। दाग़ न लग पाए गुरूर का किरदार पे, अल्लाहु अकबर नाम की टोपी ओढ़ लिया करो। हर कारोबार में होगी बरकत और नफ़ा, “बिस्मिल्लाह” से हमेशा आग़ाज़ किया करो। गर याद हो तुम्हें वो ग़ुरबत के दिन, मुफ़लिसों को मुमकिन हो ज़कात दिया करो। बख़्शी हो ख़ुदा ने मालदारी मुक़द्दर में, किसी भूखे को याद कर रोज़ा रखा करो। गर न हो फ़रमान-ए-सफ़र-ए-ख़ुदा, किसी ग़रीब को हज वास्ते दिलशाद किया करो। ये फ़रमाया था उस पैग़ंबर ने “सत्यं”, अमन-ओ-चैन से बसर ज़िंदगी अपनी किया करो।

भारत की माता ‘शूद्र’ (लेख)

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हड़प्पा सभ्यता, नागवंश, वेद-पुराण व पुरा तत्वों के आधार पर भारत में रहने वाली प्रत्येक आदिवासी मलनिवासी स्त्री शूद्र (अनार्य) यानि नागवंशी या मौर्य वंश की हैं।      इतिहास गवाह है कि जब आर्य शोध में जिनका DNA R1A1 के रूप में पाया गया गया मध्य एशिया से भारत को लूटने के उद्देश्य से आये तो ये लोग भी अरब-लूटेरों की ही तरह अपने साथ एक भी महिला को नहीं लेकर आये थे। उन्होंने लोहे की खोज की और फिर हथियारों के बल पर यहां के आदिवासी मूलनिवासियों जिनका DNA L3MN है की युद्ध में जीती हुई  शूद्र स्त्रियां (अनार्य) यानि नागवंशी या मौर्य वंशी  से विवाह रचाया तथा यहां के निवासी बनकर र्स्वस्त पर अपना अधिपत्य स्थापित कर ब्राह्मणवाद की स्थापना की। उन्होंने स्त्रियों को भी शूद्रों की श्रेणी में रखा तथा पुरूष-शुद्रों की तरह ही उन पर भी कड़े नियम लागू किए जैसे- गुलामी, अशिक्षा तथा अन्याय आदि। स्त्रियों को बच्चे पैदा करने तथा उनका शारीरिक शोषण करने के लिए ही इस्तेमाल किया जाता था। आज भारत में जिस भी जाति-धर्म के लोग निवास कर रहे हैं चाहे वे ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या फिर शूद्र ...

दाँत (लेख)

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दांत मनुष्य का एक महत्वपूर्ण अंग है। जिसकी सहायता से मनुष्य खाना खाने से लेकर धागा काटने व कुछेक वस्तुओं को छिलने का काम आसानी से कर लेता है। मुंह में इनकी संख्या अधिकतम (32) बत्तीस हो सकती हैं जिनमें से दो दांतो के उगने का कोई निर्धारित समय नहीं होता है तथा वे दोनो ही ‘अक्ल दाढ़’ कहलाती हैं। दांत कभी भी ये साबित नहीं करते हैं कि- दांतधारी जीव क्या खायेगा? क्योंकि आदिकाल में मानव मांस ही खाता था। उसे अन्य खाद्य-पदार्थों के विषय में ज्ञान नहीं था। जैसे-जैसे उसे इनके विषय मेंं ज्ञान होता रहा उसने अपनी आवश्यकताओं को अपनी सोचानुसार बदल लिया तथा बुद्धिजीवी होने का प्रमाण दिया।  दांतो का मांस खाने से कोई सम्बंध नहीं है क्योंकि पक्षी गिद्ध जिसकी चोंच में एक भी दांत नहीं होता  वह आजीवन मांस के अलावा कुछ नहीं खाता। यह तो प्रवृति, आवश्यकता, वातारण, ज्ञान व उदारता (स्नेह) पर आधारित होता है और यह भी हो सकता है कि मांस खाने वाले जीव ऐसे वातावरण में जी रहे है जोकि उनके लिए अनुकूल नहीं है या फिर यह भी हो सकता है कि प्रतिकूल जीनों की उपस्थिति के कारण उनकी बुद्धि का पूर्णरूपेण वि...

नज़्म 2 (मुकम्मल) उम्मीद न कर

ग़म से उजड़ा है दिल मेरा, तू ख़ुशी की उम्मीद न कर अश्क ही तेरे दामन में आएँगे, मुझको चुराने की उम्मीद न कर ख़ुद से बोझिल एक पत्थर हूँ, मुझको हिलाने की उम्मीद न कर वीरानियाँ हैं दिल में घर कर गईं, अब हँसी की उम्मीद न कर मंज़िल से भटका कोई राही हूँ, मुझसे सहारे की उम्मीद न कर जाने किस ठिकाने पर हो बसेरा, मुझसे पनाह की उम्मीद न कर जिससे दिल लगाया, बेवफ़ाई मिली — मुझसे वफ़ा की उम्मीद न कर जाने कब ज़ुबाँ से फिर जाऊँ, तू इख़्तियार की उम्मीद न कर फ़क़्त थोड़ी-सी है ज़िंदगी मेरी, लंबी मुलाक़ात की उम्मीद न कर क्या पता कब ये दम निकले, मेरी साँसें चलने की उम्मीद न कर

नज़्म 2 (मुकम्मल) शायद करती होगी

शरमाई झुकी आँखों से ज़ाहिर ये होता है शायद मेरे बाद वो मुझ पर मरती होगी रू-ब-रू होते ही नज़र क्यों चुरा लेते हैं बाद मेरे मिलने की फ़रियाद करती होगी मालूम है हमें पत्थर-दिल नहीं है वो प्यार के बदले वो भी प्यार करती होगी बेबसी में न कह दूँ हाल-ए-दिल अपना सोच कर ख़ुदी से तकरार करती होगी दिल में होंगे इज़हार के कई जवाब अधूरे पर होठों से झूठा ही इंकार करती होगी यक़ीं है हमें ये मोहब्बत एक तरफ़ ही नहीं मेरी याद में वो भी देर रात जगती होगी ग़ैरों के सामने बेशक इंकार कर दे हँसकर तहे-दिल से बेशुमार मुझे प्यार करती होगी