नज़्म 2 (मुकम्मल) उम्मीद न कर

ग़म से उजड़ा है दिल मेरा, तू ख़ुशी की उम्मीद न कर
अश्क ही तेरे दामन में आएँगे, मुझको चुराने की उम्मीद न कर

ख़ुद से बोझिल एक पत्थर हूँ, मुझको हिलाने की उम्मीद न कर
वीरानियाँ हैं दिल में घर कर गईं, अब हँसी की उम्मीद न कर

मंज़िल से भटका कोई राही हूँ, मुझसे सहारे की उम्मीद न कर
जाने किस ठिकाने पर हो बसेरा, मुझसे पनाह की उम्मीद न कर

जिससे दिल लगाया, बेवफ़ाई मिली — मुझसे वफ़ा की उम्मीद न कर
जाने कब ज़ुबाँ से फिर जाऊँ, तू इख़्तियार की उम्मीद न कर

फ़क़्त थोड़ी-सी है ज़िंदगी मेरी, लंबी मुलाक़ात की उम्मीद न कर

क्या पता कब ये दम निकले, मेरी साँसें चलने की उम्मीद न कर

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