नज़्म 2 (मुकम्मल) शायद करती होगी

शरमाई झुकी आँखों से ज़ाहिर ये होता है
शायद मेरे बाद वो मुझ पर मरती होगी

रू-ब-रू होते ही नज़र क्यों चुरा लेते हैं
बाद मेरे मिलने की फ़रियाद करती होगी

मालूम है हमें पत्थर-दिल नहीं है वो
प्यार के बदले वो भी प्यार करती होगी

बेबसी में न कह दूँ हाल-ए-दिल अपना
सोच कर ख़ुदी से तकरार करती होगी

दिल में होंगे इज़हार के कई जवाब अधूरे
पर होठों से झूठा ही इंकार करती होगी

यक़ीं है हमें ये मोहब्बत एक तरफ़ ही नहीं
मेरी याद में वो भी देर रात जगती होगी

ग़ैरों के सामने बेशक इंकार कर दे हँसकर
तहे-दिल से बेशुमार मुझे प्यार करती होगी

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