सिद्धूराम पहलवान - एक व्यंग

सिद्धू जी का मशहूर था पूरे गांव में नाम पढ़ना-लिखना बेकार बस था पहलवानी का काम। बार-बार एक ही कक्षा में फेल हो जाते परीक्षा के समय भी अखाड़े में दिन बिताते। चाहते खुद को अत्यधिक मजबूत बनाना उनका सपना था पहलवानी में नाम कमाना। एक बार ‘सत्यं‘जी इसका कारण पूछ बैठे तो- बड़े ही रोब-दाब से बुलंद आवाज में ऐठे- पहलवान हूं, फिर भी नहीं कोई महिला साथी मिलता है दिल को सुकून, जब लड़कियां हाथ हिलाती। कुश्ती के समय भी मैं उनसे नजरे नहीं हटाता और उनको देखने के चक्कर में बार-बार चित हो जाता। ‘सत्यं' जी ने समझाते हुए, अरे छोड़ो! ये सब काम। पहलवानी के नाम पर खुद हो जाते हो बदनाम। पहलवानी से अच्छा, अंग्रेजी सीखी जाती। तुम्हारे चार अक्षर बोलने पर लड़कियां दौड़ी चली आती। सिद्धू ने सोचा यह नुस्खा आजमाऊंगा, पांच-छह महीनों में अंग्रेजी सीख जाऊंगा। लेकिन पढ़ने-लिखने में थे उनके पहले से ही टोटे किया करते थे याद अध्याय को रोते-रोते। पांच-छह महीनों में ‘येस-नो‘ पहचान गए और साहब अपने मन में सोचा पूरी अंग्रेजी जान गए। एक बार थे वे एक शादी में जाए हुए उस शादी में थे कुछ अंग्रेज आए हुए। अंग्रेजन ने हाथ मिलाकर पूछा सिद्धू...