लहराती पतंग - कविता
हवाओं के परों पर खिलखिलाती पतंग
भुलाकर दिल से दुख और ग़म
चली है गगन को लेकर मन में उमंग
उठती-झुकती हृदय में लिए तरंग
बहती पवन में यूं करती उधम्
चंचल गौरी जैसे पिया के संग
रास-रचाती थिरकती बनके नृतक
धागे संग बंधी यूं हो मंडप में दुल्हन
लेती फेरे मिलाकर क़दम से क़दम
खुशी के बिखरे हैं चहो-ओर नवरंग
बिताएगी वह कुछ क्षण खुद के संग
हो गई घनी देर करते प्रेम-प्रसंग
जाना चाहती है दूर होकर पिया से तंग
चंचल गौरी जैसे पिया के संग
रास-रचाती थिरकती बनके नृतक
धागे संग बंधी यूं हो मंडप में दुल्हन
लेती फेरे मिलाकर क़दम से क़दम
खुशी के बिखरे हैं चहो-ओर नवरंग
बिताएगी वह कुछ क्षण खुद के संग
हो गई घनी देर करते प्रेम-प्रसंग
जाना चाहती है दूर होकर पिया से तंग

Good
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