परचम बदलने वाला है - कविता (मुकम्मल)
सवेरा होने वाला है, परचम बदलने वाला है
छुपा सूरज खुशहाली का, अब चमकने वाला है
हाथी फिर उतरेंगे रण में, हाथ उठेंगे सहारे को
बहुत ही जल्द ज़माने का, मंज़र बदलने वाला है
जो फैला आसमां दूर तलक, इंसानियत भी नीली होगी
कर्ता-धर्ता हम भारत के, सब सँवरने वाला है
तपिश भरे सफ़र के बाद, ठंडी रात का मौसम होगा
वहशियाना ये सफ़ेद रेगिस्ताँ, गुज़रने वाला है
अर्श-ओ-फ़र्श सब नीला होगा, हाथों में संविधान लिए
ये क़ाफ़िला हर इक घर से, निकलने वाला है
सवेरा होने वाला है .................…............
Our constantly conspiring enemy is not going to let our dream come true. Yet we should strive hard unitedly. Hope for the best.
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