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Showing posts from December, 2022

चार लाइन वाली शायरी

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ए ख़ुदा ये हसरत मेरी साकार तू कर दे उनके दिल में मेरी तड़प का एहसास तू कर दे जल उठे उनका दिल भी याद में मेरी इस कदर कोई करामात तू कर दे ए इलाही मुझपे इतना तो करम कर ना दे सज़ा बेजुर्म बेबस पे रहम कर फक़त प्यार में डूबा हूं है कोई गुनाह नहीं है नाम तेरा ही दूजा इतनी तो शरम कर एक रोज़ मेरी ज़िंदगी में वो भी शरीक थी वो चाहत बनके मेरे दिल के करीब थी मैं समझा था मोहब्बत में मिलेंगे हसीन पल नज़दीक से देखा तो जुदाई नसीब थी मैं ज़िंदगी में थक के चूर हो गया हूं हालात के हाथों मजबूर हो गया हूं इक ख्वाहिश थी तेरे नज़दीक आने की पर किस्मत से बहुत दूर हो गया हूं थामा है मेरा हाथ तो छोड़ ना देना रास्ता दिखा के प्यार का मुंह मोड़ना लेना तुम्हें देखता हूं मैं जिसमें सुबह-शाम मेरे विश्वास के आईने को तोड़ ना देना क्या पाते हो मुझको सताकर क्या मिलता है तुम्हें यूं दूर जाकर एहसास होगा दिल में लग जाएगी जिस दिन कैसा लगता है किसी के दिल को दुखाकर वो मेरे वज़ूद को बनाता जाता है मुझमें उम्मीद जगाता जाता है काश वो उकेर दे अपना नसीब भी मेरे हाथ पे मेरा दिल यहीं सपना सजाता जाता है ना उसने ही जुबां से इनकार से किया न...

किस्मत किसी शख़्स को आजमाती नहीं

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हर आदमी को वहशी दरिंदा ना समझो हर औरत भी औलाद को कोठे पे बैठाती नहीं दुनिया उजाड़ने में हवा का किरदार बड़ा होता है चिराग की लौ ही अकेले घर को जलाती नहीं इन दिनों मेरा ही काम सबसे मुश्किल लगा मुझे मैं बेरोज़गार हूं रोज़गार पे दुनिया बुलाती नहीं हर शख़्स इस दुनिया में किस्मत को आजमाता है कभी किस्मत किसी शख़्स को आजमाती नहीं यूं ही न जमाने ने उसे खुदा का खिताब दिया मां खून पिलाती है अपना भूखा सुलाती नहीं अपने गुनाहों की तौबा ख़ुदा से राब्ते में कर मैदान ए हश्र में फ़रियाद काम आती नहीं कितने ही सावन बीत गए प्यास अधूरी लगती है इश्क की आग है एक पल में तो बुझ पाती नहीं यूं तो सभी ग़ज़ल मैंने उसकी तारीफ़ में लिखी पर कोई भी मुकम्मल ता'अरुफ कराती नहीं

दिल पे बोझ बना रहता है

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लो खुद ही देख लो मेरे मिट्टी से रंगे हाथ मुफलिसी में कब हाथ साफ़ बना रहता है देखना ये है के तहज़ीब से उमर कौन बसर करें जवानी आने का जवानी जाने का दौर तो लगा रहता है सियासत में कौन हमेशा हुक़्मरां रहा यहां आना जाना फ़न्ने खां का लगा रहता है दौरे इश्क में गिरकर ही संभलना पड़ता है कौन इस मैदान में हर रोज़ खड़ा रहता है बेगुनाह परिंदों को यूं ही ना गिरफ़्तार करो क़ैद की एक रात का सदमा उमर भर लगा रहता है बेफ़िक्री से ना रिश्तों को लहूलुहान किया करो जख़्म ऊपर से भर भी जाए अंदर से हरा रहता है कोई कितना भी  उस क़ौम को छोटा समझे भूल करे जो फितरत से बड़ा हो बड़ा रहता है कभी जो फुर्सत मिले वालिद के दामन में बैठा कर वक्त गुजर जाए तो दिल पे बोझ बना रहता है

शायरी ज़रा हटके | Shayari Zara Hatke

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मैंने हर सहर सैर सहरा-ए-शहर में की ये सोचकर वो इक दिन रू-ब-रू होंगे आंखें आंखों-आंखों में आंखों से मिलने लगी आंखों से शर्माकर आंखें आंखों में झुकने लगी बदले में दिल के हमारा भी दिल गया खोया कुछ नहीं दिल का करार मिल गया के नशा तेरे प्यार के पागलपन का ही था एक सर-बुलंद, परस्तिश में, सरफ़रोश बन गया मेरी ग़ैरत से ना इस कदर उलझा करो तुम जब उतरती है तो लोग नज़र से उतर जाते हैं एक तो ग़मे-आशिक़ी और ये मुफ़लिसी सितम इतना ना जी सकता हूं, ना पी सकता हूं ______________________________________ वी डियो देखने के लिए लिंक पर क्लिक करें : https://youtu.be/k-OwZLuuSoA

दौर ए बेरुख़ी

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मैं गुनाहगार नहीं और तुमको एतबार नहीं फिर सोचना कैसा तोहमत जो चाहे लगा दो मैं जानता हूं के इल्ज़ाम यूं ही सिर नहीं रखते कोई सुबूत नहीं मेरे ख़िलाफ़ तो झूठा ही बना दो ग़र बदनाम ही है करना मुझ अमन-परस्त को शराब हराम है तुम मुझे शराबी बता दो इश्क मेरा मज़हब इश्क ही मेरा इमां इश्क करना है जुर्म तो जो चाहे सज़ा दो तू है जुदा मुझसे मैं भी जुदा तुझसे बरसों से थे एक जां अब ऐसा ना सिला दो इंसान को इंसान की अब ज़ियादा जरूरत है तेरे मेरे बीच की इस दूरी को मिटा दो यूं तो लड़ाना आपस में सियासत का काम है मज़हब नहीं सिखाता यह सबको बता दो यही तो कमाल है हिंदुस्तां की मिट्टी का जो भी झुक के चूम ले उसे सीने से लगा लो