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Showing posts from December, 2022

किस्मत किसी शख़्स को आजमाती नहीं

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हर आदमी को वहशी दरिंदा ना समझो हर औरत भी औलाद को कोठे पे बैठाती नहीं दुनिया उजाड़ने में हवा का किरदार बड़ा होता है चिराग की लौ ही अकेले घर को जलाती नहीं इन दिनों मेरा ही काम सबसे मुश्किल लगा मुझे मैं बेरोज़गार हूं रोज़गार पे दुनिया बुलाती नहीं हर शख़्स इस दुनिया में किस्मत को आजमाता है कभी किस्मत किसी शख़्स को आजमाती नहीं यूं ही न जमाने ने उसे खुदा का खिताब दिया मां खून पिलाती है अपना भूखा सुलाती नहीं अपने गुनाहों की तौबा ख़ुदा से राब्ते में कर मैदान ए हश्र में फ़रियाद काम आती नहीं कितने ही सावन बीत गए प्यास अधूरी लगती है इश्क की आग है एक पल में तो बुझ पाती नहीं यूं तो सभी ग़ज़ल मैंने उसकी तारीफ़ में लिखी पर कोई भी मुकम्मल ता'अरुफ कराती नहीं

दिल पे बोझ बना रहता है

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लो खुद ही देख लो मेरे मिट्टी से रंगे हाथ मुफलिसी में कब हाथ साफ़ बना रहता है देखना ये है के तहज़ीब से उमर कौन बसर करें जवानी आने का जवानी जाने का दौर तो लगा रहता है सियासत में कौन हमेशा हुक़्मरां रहा यहां आना जाना फ़न्ने खां का लगा रहता है दौरे इश्क में गिरकर ही संभलना पड़ता है कौन इस मैदान में हर रोज़ खड़ा रहता है बेगुनाह परिंदों को यूं ही ना गिरफ़्तार करो क़ैद की एक रात का सदमा उमर भर लगा रहता है बेफ़िक्री से ना रिश्तों को लहूलुहान किया करो जख़्म ऊपर से भर भी जाए अंदर से हरा रहता है कोई कितना भी  उस क़ौम को छोटा समझे भूल करे जो फितरत से बड़ा हो बड़ा रहता है कभी जो फुर्सत मिले वालिद के दामन में बैठा कर वक्त गुजर जाए तो दिल पे बोझ बना रहता है

दौर ए बेरुख़ी

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मैं गुनाहगार नहीं और तुमको एतबार नहीं फिर सोचना कैसा तोहमत जो चाहे लगा दो मैं जानता हूं के इल्ज़ाम यूं ही सिर नहीं रखते कोई सुबूत नहीं मेरे ख़िलाफ़ तो झूठा ही बना दो ग़र बदनाम ही है करना मुझ अमन-परस्त को शराब हराम है तुम मुझे शराबी बता दो इश्क मेरा मज़हब इश्क ही मेरा इमां इश्क करना है जुर्म तो जो चाहे सज़ा दो तू है जुदा मुझसे मैं भी जुदा तुझसे बरसों से थे एक जां अब ऐसा ना सिला दो इंसान को इंसान की अब ज़ियादा जरूरत है तेरे मेरे बीच की इस दूरी को मिटा दो यूं तो लड़ाना आपस में सियासत का काम है मज़हब नहीं सिखाता यह सबको बता दो यही तो कमाल है हिंदुस्तां की मिट्टी का जो भी झुक के चूम ले उसे सीने से लगा लो